Hindi Grammar - हिन्दी व्याकरणhttps://www.myallinone.inHindi Grammar - हिन्दी व्याकरणhiसमास की परिभाषा भेद, उदाहरणhttps://www.myallinone.in/samas
संस्कृत, जर्मन तथा बहुत सी भारतीय भाषाओँ में समास का बहुत प्रयोग किया जाता है। समास रचना में दो पद होते हैं, पहले पद को ‘पूर्वपद’ कहा जाता है और दूसरे पद को ‘उत्तरपद’ कहा जाता है। इन दोनों से जो नया शब्द बनता है वो समस्त पद कहलाता है।

जैसे :-

रसोई के लिए घर = रसोईघर
हाथ के लिए कड़ी = हथकड़ी
नील और कमल = नीलकमल
रजा का पुत्र = राजपुत्र |
सामासिक शब्द क्या होता है :- समास के नियमों से निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी कहा जाता है। समास होने के बाद विभक्तियों के चिन्ह गायब हो जाते हैं।

जैसे :- राजपुत्र |

समास विग्रह :
सामासिक शब्दों के बीच के सम्बन्ध को स्पष्ट करने को समास – विग्रह कहते हैं। विग्रह के बाद सामासिक शब्द गायब हो जाते हैं अथार्त जब समस्त पद के सभी पद अलग – अलग किय जाते हैं उसे समास-विग्रह कहते हैं।

जैसे :- माता-पिता = माता और पिता।

समास और संधि में अंतर :-
संधि का शाब्दिक अर्थ होता है मेल। संधि में उच्चारण के नियमों का विशेष महत्व होता है। इसमें दो वर्ण होते हैं इसमें कहीं पर एक तो कहीं पर दोनों वर्णों में परिवर्तन हो जाता है और कहीं पर तीसरा वर्ण भी आ जाता है। संधि किये हुए शब्दों को तोड़ने की क्रिया विच्छेद कहलाती है। संधि में जिन शब्दों का योग होता है उनका मूल अर्थ नहीं बदलता।

जैसे – पुस्तक+आलय = पुस्तकालय।

OR

समास का शाब्दिक अर्थ होता है संक्षेप। समास में वर्णों के स्थान पर पद का महत्व होता है। इसमें दो या दो से अधिक पद मिलकर एक समस्त पद बनाते हैं और इनके बीच से विभक्तियों का लोप हो जाता है। समस्त पदों को तोडने की प्रक्रिया को विग्रह कहा जाता है। समास में बने हुए शब्दों के मूल अर्थ को परिवर्तित किया भी जा सकता है और परिवर्तित नहीं भी किया जा सकता है।

जैसे :- विषधर = विष को धारण करने वाला अथार्त शिव।

उपमान क्या होता है :- जिससे किसी की उपमा दी जाती है उसे उपमान कहती हैं।

उपमेय क्या होता है :- जिसकी उपमा दी जाती है उसे उपमेय कहते हैं।

समास के भेद :
1. अव्ययीभाव समास
2. तत्पुरुष समास
3. कर्मधारय समास
4. द्विगु समास
5. द्वंद्व समास
6. बहुब्रीहि समास


प्रयोग की दृष्टि से समास के भेद :-

1. संयोगमूलक समास
2. आश्रयमूलक समास
3. वर्णनमूलक समास

1. अव्ययीभाव समास क्या होता है :- इसमें प्रथम पद अव्यय होता है और उसका अर्थ प्रधान होता है उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। इसमें अव्यय पद का प्रारूप लिंग, वचन, कारक, में नहीं बदलता है वो हमेशा एक जैसा रहता है।

दूसरे शब्दों में कहा जाये तो यदि एक शब्द की पुनरावृत्ति हो और दोनों शब्द मिलकर अव्यय की तरह प्रयोग हों वहाँ पर अव्ययीभाव समास होता है संस्कृत में उपसर्ग युक्त पद भी अव्ययीभाव समास ही मने जाते हैं।

जैसे :-

यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार
यथाक्रम = क्रम के अनुसार
यथानियम = नियम के अनुसार
प्रतिदिन = प्रत्येक दिन
प्रतिवर्ष =हर वर्ष
आजन्म = जन्म से लेकर
यथासाध्य = जितना साधा जा सके
धडाधड = धड-धड की आवाज के साथ
घर-घर = प्रत्येक घर
रातों रात = रात ही रात में
आमरण = म्रत्यु तक
यथाकाम = इच्छानुसार
यथास्थान = स्थान के अनुसार
अभूतपूर्व = जो पहले नहीं हुआ
निर्भय = बिना भय के
निर्विवाद = बिना विवाद के
निर्विकार = बिना विकार के
प्रतिपल = हर पल
अनुकूल = मन के अनुसार
अनुरूप = रूप के अनुसार
यथासमय = समय के अनुसार
यथाशीघ्र = शीघ्रता से
अकारण = बिना कारण के
यथासामर्थ्य = सामर्थ्य के अनुसार
यथाविधि = विधि के अनुसार
भरपेट = पेट भरकर
हाथोंहाथ = हाथ ही हाथ में
बेशक = शक के बिना
खुबसूरत = अच्छी सूरत वाली
2. तत्पुरुष समास क्या होता है :- इस समास में दूसरा पद प्रधान होता है। यह कारक से जुदा समास होता है। इसमें ज्ञातव्य-विग्रह में जो कारक प्रकट होता है उसी कारक वाला वो समास होता है। इसे बनाने में दो पदों के बीच कारक चिन्हों का लोप हो जाता है उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।

जैसे :-

देश के लिए भक्ति = देशभक्ति
राजा का पुत्र = राजपुत्र
शर से आहत = शराहत
राह के लिए खर्च = राहखर्च
तुलसी द्वारा कृत = तुलसीदासकृत
राजा का महल = राजमहल
राजा का कुमार = राजकुमार
धर्म का ग्रंथ = धर्मग्रंथ
रचना करने वाला = रचनाकार
तत्पुरुष समास के भेद :- वैसे तो तत्पुरुष समास के 8 भेद होते हैं किन्तु विग्रह करने की वजह से कर्ता और सम्बोधन दो भेदों को लुप्त रखा गया है। इसलिए विभक्तियों के अनुसार तत्पुरुष समास के 6 भेद होते हैं :-

1. कर्म तत्पुरुष समास
2. करण तत्पुरुष समास
3. सम्प्रदान तत्पुरुष समास
4. अपादान तत्पुरुष समास
5. सम्बन्ध तत्पुरुष समास
6. अधिकरण तत्पुरुष समास

1. कर्म तत्पुरुष समास क्या होता है :- इसमें दो पदों के बीच में कर्मकारक छिपा हुआ होता है। कर्मकारक का चिन्ह ‘को’ होता है। ‘को’ को कर्मकारक की विभक्ति भी कहा जाता है। उसे कर्म तत्पुरुष समास कहते हैं।

जैसे :-

रथचालक = रथ को चलने वाला
ग्रामगत = ग्राम को गया हुआ
माखनचोर =माखन को चुराने वाला
वनगमन =वन को गमन
मुंहतोड़ = मुंह को तोड़ने वाला
स्वर्गप्राप्त = स्वर्ग को प्राप्त
देशगत = देश को गया हुआ
जनप्रिय = जन को प्रिय
मरणासन्न = मरण को आसन्न
गिरहकट = गिरह को काटने वाला
कुंभकार = कुंभ को बनाने वाला
गृहागत = गृह को आगत
कठफोड़वा = कांठ को फोड़ने वाला
शत्रुघ्न = शत्रु को मारने वाला
गिरिधर = गिरी को धारण करने वाला
मनोहर = मन को हरने वाला
यशप्राप्त = यश को प्राप्त
2. करण तत्पुरुष समास क्या होता है :- जहाँ पर पहले पद में करण कारक का बोध होता है। इसमें दो पदों के बीच करण कारक छिपा होता है। करण कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘के द्वारा’ और ‘से’ होता है। उसे करण तत्पुरुष कहते हैं।

जैसे :-

स्वरचित = स्व द्वारा रचित
मनचाहा = मन से चाहा
शोकग्रस्त = शोक से ग्रस्त
भुखमरी = भूख से मरी
धनहीन = धन से हीन
बाणाहत = बाण से आहत
ज्वरग्रस्त = ज्वर से ग्रस्त
मदांध = मद से अँधा
रसभरा = रस से भरा
आचारकुशल = आचार से कुशल
भयाकुल = भय से आकुल
आँखोंदेखी = आँखों से देखी
तुलसीकृत = तुलसी द्वारा रचित
रोगातुर = रोग से आतुर
पर्णकुटीर = पर्ण से बनी कुटीर
कर्मवीर = कर्म से वीर
रक्तरंजित = रक्त से रंजित
जलाभिषेक = जल से अभिषेक
रोगग्रस्त = रोग से ग्रस्त
गुणयुक्त = गुणों से युक्त
अंधकारयुक्त = अंधकार से युक्त
3. सम्प्रदान तत्पुरुष समास क्या होता है :- इसमें दो पदों के बीच सम्प्रदान कारक छिपा होता है। सम्प्रदान कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘के लिए’ होती है। उसे सम्प्रदान तत्पुरुष समास कहते हैं।

जैसे :-

विद्यालय = विद्या के लिए आलय
रसोईघर = रसोई के लिए घर
सभाभवन = सभा के लिए भवन
विश्रामगृह = विश्राम के लिए गृह
गुरुदक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा
प्रयोगशाला = प्रयोग के लिए शाला
देशभक्ति = देश के लिए भक्ति
स्नानघर = स्नान के लिए घर
सत्यागृह = सत्य के लिए आग्रह
यज्ञशाला = यज्ञ के लिए शाला
डाकगाड़ी = डाक के लिए गाड़ी
देवालय = देव के लिए आलय
गौशाला = गौ के लिए शाला
युद्धभूमि = युद्ध के लिए भूमि
हथकड़ी = हाथ के लिए कड़ी
धर्मशाला = धर्म के लिए शाला
पुस्तकालय = पुस्तक के लिए आलय
राहखर्च = राह के लिए खर्च
परीक्षा भवन = परीक्षा के लिए भवन
4. अपादान तत्पुरुष समास क्या होता है :- इसमें दो पदों के बीच में अपादान कारक छिपा होता है। अपादान कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘से अलग’ होता है। उसे अपादान तत्पुरुष समास कहते हैं।

जैसे :-

कामचोर = काम से जी चुराने वाला
दूरागत = दूर से आगत
रणविमुख = रण से विमुख
नेत्रहीन = नेत्र से हीन
पापमुक्त = पाप से मुक्त
देशनिकाला = देश से निकाला
पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट
पदच्युत = पद से च्युत
जन्मरोगी = जन्म से रोगी
रोगमुक्त = रोग से मुक्त
जन्मांध = जन्म से अँधा
कर्महीन = कर्म से हीन
वनरहित = वन से रहित
अन्नहीन = अन्न से हीन
जलहीन = जल से हीन
गुणहीन = गुण से हीन
फलहीन = फल से हीन
भयभीत = भय से डरा हुआ
5. सम्बन्ध तत्पुरुष समास क्या होता है :- इसमें दो पदों के बीच में सम्बन्ध कारक छिपा होता है। सम्बन्ध कारक के चिन्ह या विभक्ति ‘का’, ‘के’, ‘की’होती हैं। उसे सम्बन्ध तत्पुरुष समास कहते हैं।

जैसे :-

राजपुत्र = राजा का पुत्र
गंगाजल = गंगा का जल
लोकतंत्र = लोक का तंत्र
दुर्वादल = दुर्व का दल
देवपूजा = देव की पूजा
आमवृक्ष = आम का वृक्ष
राजकुमारी = राज की कुमारी
जलधारा = जल की धारा
राजनीति = राजा की नीति
सुखयोग = सुख का योग
मूर्तिपूजा = मूर्ति की पूजा
श्रधकण = श्रधा के कण
शिवालय = शिव का आलय
देशरक्षा = देश की रक्षा
सीमारेखा = सीमा की रेखा
जलयान = जल का यान
कार्यकर्ता = कार्य का करता
सेनापति = सेना का पति
कन्यादान = कन्या का दान
गृहस्वामी = गृह का स्वामी
पराधीन – पर के अधीन
आनंदाश्रम = आनन्द का आश्रम
राजाज्ञा = राजा की आज्ञा
6. अधिकरण तत्पुरुष समास क्या होता है :- इसमें दो पदों के बीच अधिकरण कारक छिपा होता है। अधिकरण कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘में’, ‘पर’ होता है। उसे अधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं।

जैसे :-

कार्य कुशल = कार्य में कुशल
वनवास = वन में वास
ईस्वरभक्ति = ईस्वर में भक्ति
आत्मविश्वास = आत्मा पर विश्वास
दीनदयाल = दीनों पर दयाल
दानवीर = दान देने में वीर
आचारनिपुण = आचार में निपुण
जलमग्न = जल में मग्न
सिरदर्द = सिर में दर्द
क्लाकुशल = कला में कुशल
शरणागत = शरण में आगत
आनन्दमग्न = आनन्द में मग्न
आपबीती = आप पर बीती
नगरवास = नगर में वास
रणधीर = रण में धीर
क्षणभंगुर = क्षण में भंगुर
पुरुषोत्तम = पुरुषों में उत्तम
लोकप्रिय = लोक में प्रिय
गृहप्रवेश = गृह में प्रवेश
युधिष्ठिर = युद्ध में स्थिर
शोकमग्न = शोक में मग्न
धर्मवीर = धर्म में वीर
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तत्पुरुष समास के प्रकार :-
1. नञ तत्पुरुष समास

1. नञ तत्पुरुष समास क्या होता है :- इसमें पहला पद निषेधात्मक होता है उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं।

जैसे :-

असभ्य = न सभ्य
अनादि = न आदि
असंभव = न संभव
अनंत = न अंत
3. कर्मधारय समास क्या होता है :- इस समास का उत्तर पद प्रधान होता है। इस समास में विशेषण-विशेष्य और उपमेय-उपमान से मिलकर बनते हैं उसे कर्मधारय समास कहते हैं।

जैसे :-

चरणकमल = कमल के समान चरण
नीलगगन = नीला है जो गगन
चन्द्रमुख = चन्द्र जैसा मुख
पीताम्बर = पीत है जो अम्बर
महात्मा = महान है जो आत्मा
लालमणि = लाल है जो मणि
महादेव = महान है जो देव
देहलता = देह रूपी लता
नवयुवक = नव है जो युवक
अधमरा = आधा है जो मरा
प्राणप्रिय = प्राणों से प्रिय
श्यामसुंदर = श्याम जो सुंदर है
नीलकंठ = नीला है जो कंठ
महापुरुष = महान है जो पुरुष
नरसिंह = नर में सिंह के समान
कनकलता = कनक की सी लता
नीलकमल = नीला है जो कमल
परमानन्द = परम है जो आनंद
सज्जन = सत् है जो जन
कमलनयन = कमल के समान नयन
कर्मधारय समास के भेद :-

1. विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास
2. विशेष्यपूर्वपद कर्मधारय समास
3. विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास
4. विशेष्योभयपद कर्मधारय समास


1. विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास :- जहाँ पर पहला पद प्रधान होता है वहाँ पर विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास होता है।

जैसे :-

नीलीगाय = नीलगाय
पीत अम्बर = पीताम्बर
प्रिय सखा = प्रियसखा
2. विशेष्यपूर्वपद कर्मधारय समास :- इसमें पहला पद विशेष्य होता है और इस प्रकार के सामासिक पद ज्यादातर संस्कृत में मिलते हैं।

जैसे :- कुमारी श्रमणा = कुमारश्रमणा

3. विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास :- इसमें दोनों पद विशेषण होते हैं।

जैसे :- नील – पीत, सुनी – अनसुनी, कहनी – अनकहनी

4. विशेष्योभयपद कर्मधारय समास :- इसमें दोनों पद विशेष्य होते है।

जैसे :- आमगाछ, वायस-दम्पति।

कर्मधारय समास के उपभेद :-
उपमानकर्मधारय समास
उपमितकर्मधारय समास
रूपककर्मधारय समास
1. उपमानकर्मधारय समास :- इसमें उपमानवाचक पद का उपमेयवाचक पद के साथ समास होता है। इस समास में दोनों शब्दों के बीच से ‘इव’ या ‘जैसा’ अव्यय का लोप हो जाता है और दोनों पद, चूँकि एक ही कर्ता विभक्ति, वचन और लिंग के होते हैं, इसलिए समस्त पद कर्मधारय लक्ष्ण का होता है। उसे उपमानकर्मधारय समास कहते हैं।

जैसे :- विद्युत् जैसी चंचला = विद्युचंचला

2. उपमितकर्मधारय समास :- यह समास उपमानकर्मधारय का उल्टा होता है। इस समास में उपमेय पहला पद होता है और उपमान दूसरा पद होता है। उसे उपमितकर्मधारय समास कहते हैं।

जैसे :- अधरपल्लव के समान = अधर – पल्लव, नर सिंह के समान = नरसिंह।

3. रूपककर्मधारय समास :- जहाँ पर एक का दूसरे पर आरोप होता है वहाँ पर रूपककर्मधारय समास होता है।

जैसे :- मुख ही है चन्द्रमा = मुखचन्द्र।

4. द्विगु समास क्या होता है :- द्विगु समास में पूर्वपद संख्यावाचक होता है और कभी-कभी उत्तरपद भी संख्यावाचक होता हुआ देखा जा सकता है। इस समास में प्रयुक्त संख्या किसी समूह को दर्शाती है किसी अर्थ को नहीं। इससे समूह और समाहार का बोध होता है। उसे द्विगु समास कहते हैं।

जैसे :-

नवग्रह = नौ ग्रहों का समूह
दोपहर = दो पहरों का समाहार
त्रिवेणी = तीन वेणियों का समूह
पंचतन्त्र = पांच तंत्रों का समूह
त्रिलोक = तीन लोकों का समाहार
शताब्दी = सौ अब्दों का समूह
पंसेरी = पांच सेरों का समूह
सतसई = सात सौ पदों का समूह
चौगुनी = चार गुनी
त्रिभुज = तीन भुजाओं का समाहार
चौमासा = चार मासों का समूह
नवरात्र = नौ रात्रियों का समूह
अठन्नी = आठ आनों का समूह
सप्तऋषि = सात ऋषियों का समूह
त्रिकोण = तीन कोणों का समाहार
सप्ताह = सात दिनों का समूह
तिरंगा = तीन रंगों का समूह
चतुर्वेद = चार वेदों का समाहार
द्विगु समास के भेद :-

1. समाहारद्विगु समास
2. उत्तरपदप्रधानद्विगु समास

1. समाहारद्विगु समास :- समाहार का मतलब होता है समुदाय, इकट्ठा होना, समेटना उसे समाहारद्विगु समास कहते हैं।

जैसे :-

तीन लोकों का समाहार = त्रिलोक
पाँचों वटों का समाहार = पंचवटी
तीन भुवनों का समाहार = त्रिभुवन
2. उत्तरपदप्रधानद्विगु समास :- उत्तरपदप्रधानद्विगु समास दो प्रकार के होते हैं।
(1) बेटा या फिर उत्पत्र के अर्थ में।

जैसे :-

दो माँ का =दुमाता
दो सूतों के मेल का = दुसूती।

(2) जहाँ पर सच में उत्तरपद पर जोर दिया जाता है।

जैसे :-

पांच प्रमाण = पंचप्रमाण
पांच हत्थड = पंचहत्थड

5. द्वंद्व समास क्या होता है :- इस समास में दोनों पद ही प्रधान होते हैं इसमें किसी भी पद का गौण नहीं होता है। ये दोनों पद एक-दूसरे पद के विलोम होते हैं लेकिन ये हमेशा नहीं होता है। इसका विग्रह करने पर और, अथवा, या, एवं का प्रयोग होता है उसे द्वंद्व समास कहते हैं।

जैसे :-

जलवायु = जल और वायु
अपना-पराया = अपना या पराया
पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
राधा-कृष्ण = राधा और कृष्ण
अन्न-जल = अन्न और जल
नर-नारी = नर और नारी
गुण-दोष = गुण और दोष
देश-विदेश = देश और विदेश
अमीर-गरीब = अमीर और गरीब
नदी-नाले = नदी और नाले
धन-दौलत = धन और दौलत
सुख-दुःख = सुख और दुःख
आगे-पीछे = आगे और पीछे
ऊँच-नीच = ऊँच और नीच
आग-पानी = आग और पानी
मार-पीट = मारपीट
राजा-प्रजा = राजा और प्रजा
ठंडा-गर्म = ठंडा या गर्म
माता-पिता = माता और पिता
दिन-रात = दिन और रात
भाई-बहन = भाई और बहन
द्वंद्व समास के भेद :-

1. इतरेतरद्वंद्व समास
2. समाहारद्वंद्व समास
3. वैकल्पिकद्वंद्व समास

1. इतरेतरद्वंद्व समास :- वो द्वंद्व जिसमें और शब्द से भी पद जुड़े होते हैं और अलग अस्तित्व रखते हों उसे इतरेतर द्वंद्व समास कहते हैं। इस समास से जो पद बनते हैं वो हमेशा बहुवचन में प्रयोग होते हैं क्योंकि वे दो या दो से अधिक पदों से मिलकर बने होते हैं।

जैसे :-

राम और कृष्ण = राम-कृष्ण
माँ और बाप = माँ-बाप
अमीर और गरीब = अमीर-गरीब
गाय और बैल = गाय-बैल
ऋषि और मुनि = ऋषि-मुनि
बेटा और बेटी = बेटा-बेटी
2. समाहारद्वंद्व समास :- समाहार का अर्थ होता है समूह। जब द्वंद्व समास के दोनों पद और समुच्चयबोधक से जुड़ा होने पर भी अलग-अलग अस्तिव नहीं रखकर समूह का बोध कराते हैं, तब वह समाहारद्वंद्व समास कहलाता है। इस समास में दो पदों के अलावा तीसरा पद भी छुपा होता है और अपने अर्थ का बोध अप्रत्यक्ष रूप से कराते हैं।

जैसे :-

दालरोटी = दाल और रोटी
हाथपॉंव = हाथ और पॉंव
आहारनिंद्रा = आहार और निंद्रा
3. वैकल्पिक द्वंद्व समास :- इस द्वंद्व समास में दो पदों के बीच में या, अथवा आदि विकल्पसूचक अव्यय छिपे होते हैं उसे वैकल्पिक द्वंद्व समास कहते हैं। इस समास में ज्यादा से ज्यादा दो विपरीतार्थक शब्दों का योग होता है।

जैसे :-

पाप-पुण्य = पाप या पुण्य
भला-बुरा = भला या बुरा
थोडा-बहुत = थोडा या बहुत
6. बहुब्रीहि समास क्या होता है :- इस समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता। जब दो पद मिलकर तीसरा पद बनाते हैं तब वह तीसरा पद प्रधान होता है। इसका विग्रह करने पर “वाला , है, जो, जिसका, जिसकी, जिसके, वह” आदि आते हैं वह बहुब्रीहि समास कहलाता है।

जैसे :-

गजानन = गज का आनन है जिसका (गणेश)
त्रिनेत्र = तीन नेत्र हैं जिसके (शिव)
नीलकंठ = नीला है कंठ जिसका (शिव)
लम्बोदर = लम्बा है उदर जिसका (गणेश)
दशानन = दश हैं आनन जिसके (रावण)
चतुर्भुज = चार भुजाओं वाला (विष्णु)
पीताम्बर = पीले हैं वस्त्र जिसके (कृष्ण)
चक्रधर= चक्र को धारण करने वाला (विष्णु)
वीणापाणी = वीणा है जिसके हाथ में (सरस्वती)
स्वेताम्बर = सफेद वस्त्रों वाली (सरस्वती)
सुलोचना = सुंदर हैं लोचन जिसके (मेघनाद की पत्नी)
दुरात्मा = बुरी आत्मा वाला (दुष्ट)
घनश्याम = घन के समान है जो (श्री कृष्ण)
मृत्युंजय = मृत्यु को जीतने वाला (शिव)
निशाचर = निशा में विचरण करने वाला (राक्षस)
गिरिधर = गिरी को धारण करने वाला (कृष्ण)
पंकज = पंक में जो पैदा हुआ (कमल)
त्रिलोचन = तीन है लोचन जिसके (शिव)
विषधर = विष को धारण करने वाला (सर्प)
बहुब्रीहि समास के भेद :-

1. समानाधिकरण बहुब्रीहि समास
2. व्यधिकरण बहुब्रीहि समास
3. तुल्ययोग बहुब्रीहि समास
4. व्यतिहार बहुब्रीहि समास
5. प्रादी बहुब्रीहि समास

1. समानाधिकरण बहुब्रीहि समास :- इसमें सभी पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन समस्त पद के द्वारा जो अन्य उक्त होता है, वो कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण आदि विभक्तियों में भी उक्त हो जाता है उसे समानाधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं।

जैसे :-

प्राप्त है उदक जिसको = प्रप्तोद्क
जीती गई इन्द्रियां हैं जिसके द्वारा = जितेंद्रियाँ
दत्त है भोजन जिसके लिए = दत्तभोजन
निर्गत है धन जिससे = निर्धन
नेक है नाम जिसका = नेकनाम
सात है खण्ड जिसमें = सतखंडा
2. व्यधिकरण बहुब्रीहि समास :- समानाधिकरण बहुब्रीहि समास में दोनों पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन यहाँ पहला पद तो कर्ता कारक की विभक्ति का होता है लेकिन बाद वाला पद सम्बन्ध या फिर अधिकरण कारक का होता है उसे व्यधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं।

जैसे :-

शूल है पाणी में जिसके = शूलपाणी
वीणा है पाणी में जिसके = वीणापाणी
3. तुल्ययोग बहुब्रीहि समास :- जिसमें पहला पद ‘सह’ होता है वह तुल्ययोग बहुब्रीहि समास कहलाता है। इसे सहबहुब्रीहि समास भी कहती हैं। सह का अर्थ होता है साथ और समास होने की वजह से सह के स्थान पर केवल स रह जाता है।

इस समास में इस बात पर ध्यान दिया जाता है की विग्रह करते समय जो सह दूसरा वाला शब्द प्रतीत हो वो समास में पहला हो जाता है।

जैसे :-

जो बल के साथ है = सबल
जो देह के साथ है = सदेह
जो परिवार के साथ है = सपरिवार
4. व्यतिहार बहुब्रीहि समास :- जिससे घात या प्रतिघात की सुचना मिले उसे व्यतिहार बहुब्रीहि समास कहते हैं। इस समास में यह प्रतीत होता है की ‘इस चीज से और उस चीज से लड़ाई हुई।

जैसे :-

मुक्के-मुक्के से जो लड़ाई हुई = मुक्का-मुक्की
बातों-बातों से जो लड़ाई हुई = बाताबाती

5. प्रादी बहुब्रीहि समास :- जिस बहुब्रीहि समास पूर्वपद उपसर्ग हो वह प्रादी बहुब्रीहि समास कहलाता है।

जैसे :-

नहीं है रहम जिसमें = बेरहम
नहीं है जन जहाँ = निर्जन
1. संयोगमूलक समास क्या होता है :- संयोगमूलक समास को संज्ञा समास भी कहते हैं। इस समास में दोनों पद संज्ञा होते हैं अथार्त इसमें दो संज्ञाओं का संयोग होता है।

जैसे :- माँ-बाप, भाई-बहन, दिन-रात, माता-पिता।

2. आश्रयमूलक समास क्या होता है :- आश्रयमूलक समास को विशेषण समास भी कहा जाता है। यह प्राय कर्मधारय समास होता है। इस समास में प्रथम पद विशेषण होता है और दूसरा पद का अर्थ बलवान होता है। यह विशेषण-विशेष्य, विशेष्य-विशेषण, विशेषण, विशेष्य आदि पदों द्वारा सम्पन्न होता है।

जैसे :- कच्चाकेला, शीशमहल, घनस्याम, लाल-पीला, मौलवीसाहब, राजबहादुर।

3. वर्णनमूलक समास क्या होता है :- इसे वर्णनमूलक समास भी कहते हैं। वर्णनमूलक समास के अंतर्गत बहुब्रीहि और अव्ययीभाव समास का निर्माण होता है। इस समास में पहला पद अव्यय होता है और दूसरा पद संज्ञा। उसे वर्णनमूलक समास कहते हैं।

जैसे :- यथाशक्ति, प्रतिमास, घड़ी-घड़ी, प्रत्येक, भरपेट, यथासाध्य।

कर्मधारय समास और बहुब्रीहि समास में अंतर :-
समास के कुछ उदहारण है जो कर्मधारय और बहुब्रीहि समास दोनों में समान रूप से पाए जाते हैं, इन दोनों में अंतर होता है। कर्मधारय समास में एक पद विशेषण या उपमान होता है और दूसरा पद विशेष्य या उपमेय होता है। इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है। कर्मधारय समास में दूसरा पद प्रधान होता है तथा पहला पद विशेष्य के विशेषण का कार्य करता है।

जैसे :- नीलकंठ = नीला कंठ

OR

बहुब्रीहि समास में दो पद मिलकर तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं इसमें तीसरा पद प्रधान होता है।

जैसे :- नीलकंठ = नील+कंठ

द्विगु समास और बहुब्रीहि समास में अंतर :-
द्विगु समास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है और दूसरा पद विशेष्य होता है जबकि बहुब्रीहि समास में समस्त पद ही विशेषण का कार्य करता है।

जैसे :-

चतुर्भुज – चार भुजाओं का समूह
चतुर्भुज – चार हैं भुजाएं जिसकी
द्विगु और कर्मधारय समास में अंतर :-
(1) द्विगु का पहला पद हमेशा संख्यावाचक विशेषण होता है जो दूसरे पद की गिनती बताता है जबकि कर्मधारय का एक पद विशेषण होने पर भी संख्यावाचक कभी नहीं होता है।
(2) द्विगु का पहला पद्द ही विशेषण बन कर प्रयोग में आता है जबकि कर्मधारय में कोई भी पद दूसरे पद का विशेषण हो सकता है।

जैसे :-

नवरात्र – नौ रात्रों का समूह
रक्तोत्पल – रक्त है जो उत्पल

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https://www.myallinone.in/samas11-Feb-2020 2:02:40 pm
पर्यायवाची शब्द परिभाषा उदाहरणhttps://www.myallinone.in/paryayvachi-shabdउदाहरण के लिए :-

अ आ से शुरू होने वाले पर्यायवाची शब्द :

अंधकार – तम, तिमिर, अँधेरा, तमस, अंधियारा.

आम – रसाल, आम्र, सौरभ, अमृतफल.

आंसू – नेत्रजल, नयनजल, चक्षुजल, अश्रु.

आत्मा – जीव, चैतन्य, चेतनतत्तव, अंतःकरण.

आग – अग्नि, अनल, हुतासन, पावक, कृशानु, वहनि, शिखी, वह्नि.

आँख – लोचन, नयन, नेत्र, चक्षु, दृष्टि.

आकाश – नभ, गगन, अम्बर, व्योम, आसमान, अर्श.

आनंद – हर्ष, सुख, आमोद, मोद, प्रमोद, उल्लास.

आश्रम – कुटी, विहार, मठ, संघ, अखाड़ा.

अग्नि – आग, अनल, पावक.

अपमान – अनादर, अवज्ञा, अवहेलना, तिरस्कार.

अलंकार – आभूषण, गहना, जेवर.

अहंकार – दंभ, अभिमान, दर्प, मद, घमंड.

अमृत – सुधा, अमिय, पीयूष, सोम.

असुर – दैत्य, दानव, राक्षस, निशाचर, रजनीचर, दनुज, रात्रिचर, तमचर.

अतिथि – मेहमान, अभ्यागत, आगन्तुक.

अनुपम – अपूर्व, अतुल्य, अनोखा, अद्भुत, अनन्य.

अर्थ – धन, द्रव्य, मुद्रा, दौलत, वित्त, पैसा.

अश्व – हय, तुरंग, घोड़ा, घोटक, बाजि, सैन्धव.


इ , ई से शुरू होने वाले पर्यायवाची शब्द :

इच्छा – अभिलाषा, चाह, कामना, लालसा, मनोरथ, आकांक्षा, अभीष्ट.

इन्द्र – सुरेश, सुरेन्द्र, देवेन्द्र, सुरपति, शक्र, पुरंदर, देवराज, महेन्द्र, शचीपति.

इन्द्राणि – इन्द्रवधू, मधवानी, शची, शतावरी, पोलोमी.

ईश्वर – परमात्मा, प्रभु, ईश, जगदीश, भगवान, परमेश्वर, जगदीश्वर, विधाता.

उ, ऊ से शुरू होने वाले पर्यायवाची शब्द :

उपवन – बाग़, बगीचा, उद्यान, वाटिका, गुलशन.

उक्ति – कथन, वचन, सूक्ति.

उग्र – प्रचण्ड, उत्कट, तेज, तीव्र, विकट.

उचित – ठीक, मुनासिब, वाज़िब, समुचित, युक्तिसंगत, न्यायसंगत, तर्कसंगत.

उच्छृंखल – उद्दंड, अक्खड़, आवारा, निरकुंश, मनमर्जी, स्वेच्छाचारी.

उज्जड़ – अशिष्ट, असभ्य, गँवार, जंगली, देहाती, उद्दंड, निरकुंश.

उजला – उज्ज्वल, श्वेत, सफ़ेद, धवल.

उजाड़ – जंगल, बियावान, वन.

उजाला – प्रकाश, रोशनी, चाँदनी.

उत्कर्ष – समृद्धि, उन्नति, प्रगति, उठान.

उत्कृष्ट – उत्तम, उन्नत, श्रेष्ठ, अच्छा, बढ़िया, उम्दा.

उत्कोच – घूस, रिश्वत.

उत्पत्ति – उद्गम, पैदाइश, जन्म, उद्भव, सृष्टि, आविर्भाव, उदय.

उद्धार – मुक्ति, छुटकारा, निस्तार.

उपाय – युक्ति, साधन, तरकीब, तदबीर, यत्न, प्रयत्न.

ऊधम – उपद्रव, उत्पात, धूम, हुल्लड़, हुड़दंग, धमाचौकड़ी.

ए, ऐ से शुरू होने वाले पर्यायवाची शब्द :

ऐक्य – एकत्व, एका, एकता, मेल.

ऐश्वर्य – समृद्धि, विभूति.

ओ, औ से शुरू होने वाले पर्यायवाची शब्द :

ओज – तेज, शक्ति, बल, वीर्य.

ओंठ– ओष्ठ, अधर, होंठ.

औचक – अचानक, यकायक, सहसा.

औरत – स्त्री, जोरू, घरनी, घरवाली.

क से शुरू होने वाले पर्यायवाची शब्द :

किसान – कृषक, भूमिपुत्र, हलधर, खेतिहर, अन्नदाता.

कृष्ण – राधापति, घनश्याम, वासुदेव, माधव, मोहन, केशव, गोविन्द, गिरधारी.

कान – कर्ण, श्रुति, श्रुतिपटल, श्रवण श्रोत, श्रुतिपुट.

कोयल – कोकिला, पिक, काकपाली, बसंतदूत, सारिका, कुहुकिनी, वनप्रिया.

क्रोध – रोष, कोप, अमर्ष, कोह, प्रतिघात.

कीर्ति – यश, प्रसिद्धि.

ऋषि – मुनि, साधु, यति, संन्यासी, तत्वज्ञ, तपस्वी.

कच – बाल, केश, कुन्तल, चिकुर, अलक, रोम, शिरोरूह.

कमल– नलिन, अरविंद, उत्पल, राजीव, पद्म, पंकज, नीरज, सरोज, जलज, जलजात, शतदल, पुण्डरीक, इन्दीवर.

कबूतर – कपोत, रक्तलोचन, पारावत.

कामदेव – मदन, मनोज, अनंग, काम, रतिपति, पुष्पधन्वा, मन्मथ.

कण्ठ – ग्रीवा, गर्दन, गला.

कृपा – प्रसाद, करुणा, दया, अनुग्रह.

किताब – पोथी, ग्रन्थ, पुस्तक.

किनारा – तीर, कूल, कगार, तट.

कपड़ा – चीर, वसन, पट, वस्त्र, परिधान.

किरण – ज्योति, प्रभा, रश्मि, दीप्ति.

ख, ग से शुरू होने वाले पर्यायवाची शब्द :

खग – पक्षी, विहग, नभचर, अण्डज, पखेरू.

खंभा – स्तूप, स्तम्भ, खंभ.

खल – दुर्जन, दुष्ट, घूर्त, कुटिल.

खून – रक्त, लहू, शोणित, रुधिर.


गज – हाथी, हस्ती, मतंग, कूम्भा, मदकल .

गाय – गौ, धेनु, भद्रा.

गंगा – देवनदी, मंदाकिनी, भगीरथी, विश्नुपगा, देवपगा, देवनदी, जाह्नवी, त्रिपथगा.

गणेश – विनायक, गजानन, गौरीनंदन, गणपति, गणनायक, शंकरसुवन, लम्बोदर, एकदन्त.

गृह – घर, सदन, भवन, धाम, निकेतन, निवास, आलय, आवास.

गर्मी – ताप, ग्रीष्म, ऊष्मा, गरमी.

गुरु – शिक्षक, आचार्य, उपाध्याय.

घ, च से शुरू होने वाले पर्यायवाची शब्द :

घट – घड़ा, कलश, कुम्भ, निप.

घर – आलय, आवास, गृह, निकेतन, निवास, भवन, वास, वास-स्थान, शाला, सदन.

घृत – घी, अमृत, नवनीत.

घास – तृण, दूर्वा, दूब, कुश.

चरण – पद, पग, पाँव, पैर, पाद.

चतुर – विज्ञ, निपुण, नागर, पटु, कुशल, दक्ष, प्रवीण, योग्य.

चंद्रमा – चाँद, चन्द्र, शशि, रजनीश, निशानाथ, सोम, कलानिधि.

चाँदनी – चन्द्रिका, कौमुदी, ज्योत्सना, चन्द्रमरीचि, उजियारी, चन्द्रप्रभा, जुन्हाई.

चाँदी – रजत, सौध, रूपा, रूपक, रौप्य, चन्द्रहास.

चोटी – मूर्धा, सानु, शृंग.

छ, ज से शुरू होने वाले पर्यायवाची शब्द :

छतरी – छत्र, छाता.

छली – छलिया, कपटी, धोखेबाज.

छवि – शोभा, सौंदर्य, कान्ति, प्रभा.

छानबीन – जाँच, पूछताछ, खोज, अन्वेषण, शोध.

छैला – सजीला, बाँका, शौकीन.

छोर – नोक, कोर, किनारा, सिरा.

जल – सलिल, वारि, नीर, तोय, अम्बु, पानी, पय, पेय.

जगत – संसार, विश्व, जग, भव, दुनिया, लोक.

जीभ – रसज्ञा, जिह्वा, वाणी, वाचा, जबान.

जंगल – कानन, वन, अरण्य, गहन, कांतार, बीहड़, विटप.

जेवर – गहना, अलंकार, भूषण.

ज्योति – आभा, छवि, द्युति, दीप्ति, प्रभा.

झ, त और द से शुरू होने वाले पर्यायवाची शब्द :

झूठ – असत्य, मिथ्या.

तरुवर – वृक्ष, पेड़, द्रुम, तरु, पादप.

तलवार – असि, कृपाण, करवाल, चन्द्रहास.

तालाब – सरोवर, जलाशय, पुष्कर, पोखरा.

तीर – शर, बाण, अनी, सायक.

दास – सेवक, नौकर, चाकर, अनुचर, भृत्य.

दधि – दही, गोरस, मट्ठा.

दरिद्र – निर्धन, ग़रीब, रंक, कंगाल, दीन.

दिन – दिवस, याम, दिवा, वार.

दीन – ग़रीब, दरिद्र, रंक, अकिंचन, निर्धन, कंगाल.

दीपक – दीप, दीया, प्रदीप.

दुःख – पीड़ा,कष्ट, व्यथा, वेदना, संताप, शोक, खेद, पीर.

दूध – दुग्ध, क्षीर, पय, गौरस, स्तन्य.

दुष्ट – पापी, नीच, दुर्जन, अधम, खल, पामर.

दाँत – दन्त.

दर्पण – शीशा, आरसी, आईना.

दुर्गा – चंडिका, भवानी, कल्याणी, महागौरी, कालिका, शिवा, चण्डी, चामुण्डा.

देवता – सुर, देव.

देह – काया, तन, शरीर.

ध, न से शुरू होने वाले पर्यायवाची शब्द :

धन – दौलत, संपत्ति, सम्पदा, वित्त.

धरती – धरा, धरती, वसुधा, ज़मीन, पृथ्वी, भू, भूमि, धरणी, वसुंधरा, अचला, मही, रत्नगर्भा.

धनुष – चाप, शरासन, कमान, कोदंड, धनु.

नदी – सरिता, तटिनी, सरि, सारंग, तरंगिणी, दरिया, निर्झरिणी.

नया – नूतन, नव, नवीन, नव्य.

नाव – नौका, तरणी, तरी.

प, ब से शुरू होने वाले पर्यायवाची शब्द :

पवन – वायु, हवा, समीर, वात, मारुत, अनिल.

पहाड़ – पर्वत, गिरि, अचल, शैल, भूधर, महीधर.

पक्षी – खेचर, दविज, पतंग, पंछी, खग, चिड़िया, गगनचर, पखेरू, विहंग, नभचर.

पति – स्वामी, प्राणाधार, प्राणप्रिय, प्राणेश.

पत्नी – भार्या, वधू, वामा, अर्धांगिनी, सहधर्मिणी, गृहणी, बहु, वनिता, दारा, जोरू, वामांगिनी.

पुत्र – बेटा, आत्मज, सुत, वत्स, तनुज, तनय, नंदन.

पुत्री – बेटी, आत्मजा, तनूजा, सुता, तनया.

पुष्प – फूल, सुमन, कुसुम, मंजरी, प्रसून.

फूल – पुष्प, सुमन, कुसुम, गुल, प्रसून.

बादल – मेघ, घन, जलधर, जलद, वारिद, पयोधर.

बालू – रेत, बालुका, सैकत.

बन्दर – वानर, कपि, हरि.

बिजली – घनप्रिया, इन्द्र्वज्र, चंचला, सौदामनी, चपला, दामिनी, तड़ित, विद्युत.

बगीचा – बाग़, वाटिका, उपवन, उद्यान, फुलवारी, बगिया.

बाण – सर, तीर, सायक, विशिख.

बाल – कच, केश, चिकुर, चूल.


ब्रह्मा – विधाता, स्वयंभू, प्रजापति, पितामह, चतुरानन, विरंचि, अज.

बलदेव – बलराम, बलभद्र, हलायुध, रोहिणेय.

बहुत – अनेक, अतीव, अति, बहुल, प्रचुर, अपरिमित, प्रभूत, अपार, अमित, अत्यन्त, असंख्य.

ब्राह्मण – द्विज, भूदेव, विप्र, महीदेव, भूमिसुर, भूमिदेव.

भ, म से शुरू होने वाले पर्यायवाची शब्द :

भय – भीति, डर, विभीषिका.

भाई – तात, अनुज, अग्रज, भ्राता, भ्रातृ.

भूषण – जेवर, गहना, आभूषण, अलंकार.

भौंरा – मधुप, मधुकर, द्विरेप, अलि, षट्पद, भृंग, भ्रमर.

मनुष्य – आदमी, नर, मानव, मानुष, मनुज.

मदिरा – शराब, हाला, आसव, मद.

मोर – कलापी, नीलकंठ, नर्तकप्रिय.

मधु – शहद, रसा, शहद.

मृग – हिरण, सारंग, कृष्णसार.

मछली – मीन, मत्स्य, जलजीवन, शफरी, मकर.

माता – जननी, माँ, अंबा, जनयत्री, अम्मा.

मित्र – सखा, सहचर, साथी, दोस्त.

य, र से शुरू होने वाले पर्यायवाची शब्द :

यम – सूर्यपुत्र, जीवितेश, कृतांत, अन्तक, दण्डधर, कीनाश, यमराज.

यमुना – कालिन्दी, सूर्यसुता, रवितनया, तरणि-तनूजा, तरणिजा, अर्कजा, भानुजा.

युवति – युवती, सुन्दरी, श्यामा, किशोरी, तरुणी, नवयौवना.

रमा – इन्दिरा, हरिप्रिया, श्री, लक्ष्मी, कमला, पद्मा, पद्मासना, समुद्रजा, श्रीभार्गवी, क्षीरोदतनया.

रात – रात्रि, रैन, रजनी, निशा, यामिनी, निशि, यामा, विभावरी.

राजा – नृप, नृपति, भूपति, नरपति, भूपाल, नरेश, महीपति, अवनीपति.

रात्रि – निशा, रैन, रात, यामिनी, शर्वरी, तमस्विनी, विभावरी.

रामचन्द्र – सीतापति, राघव, रघुपति, रघुवर, रघुनाथ, रघुराज, रघुवीर, जानकीवल्लभ, कौशल्यानन्दन.

रावण – दशानन, लंकेश, लंकापति, दशशीश, दशकंध.

राधिका – राधा, ब्रजरानी, हरिप्रिया, वृषभानुजा.

ल, व् से शुरू होने वाले पर्यायवाची शब्द :

लड़का – बालक, शिशु, सुत, किशोर, कुमार.

लड़की – बालिका, कुमारी, सुता, किशोरी, बाला, कन्या.

लक्ष्मी – कमला, पद्मा, रमा, हरिप्रिया, श्री, इंदिरा, पद्मजा, सिन्धुसुता, कमलासना.

लक्ष्मण – लखन, शेषावतार, सौमित्र, रामानुज, शेष.

लौह – अयस, लोहा, सार.

लता – बल्लरी, बल्ली, बेली.

वायु – हवा, पवन, समीर, अनिल, वात, मारुत.

वसन – अम्बर, वस्त्र, परिधान, पट, चीर.

विधवा – अनाथा, पतिहीना.

विष – ज़हर, हलाहल, गरल, कालकूट.

वृक्ष – पेड़, पादप, विटप, तरू, गाछ, दरख्त, शाखी, विटप, द्रुम.

विष्णु – नारायण, चक्रपाणी.

विश्व – जगत, जग, भव, संसार, लोक, दुनिया.

विद्युत – चपला, चंचला, दामिनी, सौदामिनी, तड़ित, बीजुरी, घनवल्ली, क्षणप्रभा, करका.

बारिश – वर्षण, वृष्टि, वर्षा, पावस, बरसात.

वीर्य – जीवन, सार, तेज, शुक्र, बीज.

वज्र – कुलिस, पवि, अशनि, दभोलि.

विशाल – विराट, दीर्घ, वृहत, बड़ा, महान.

वृक्ष – गाछ, तरु, पेड़, द्रुम, पादप, विटप, शाखी.

स, श, और ष से शुरू होने वाले पर्यायवाची शब्द :

शिव – भोलेनाथ, शम्भू, त्रिलोचन, महादेव, नीलकंठ, शंकर.

शरीर – देह, तनु, काया, कलेवर, अंग, गात.

शत्रु – रिपु, दुश्मन, अमित्र, वैरी, अरि, विपक्षी.

सीता – वैदेही, जानकी, भूमिजा, जनकतनया, जनकनन्दिनी, रामप्रिया.

शिक्षक – गुरु, अध्यापक, आचार्य, उपाध्याय.

शेर – केहरि, केशरी, वनराज, सिंह.

शेषनाग – अहि, नाग, भुजंग, व्याल, उरग, पन्नग, फणीश, सारंग.

शुभ्र – गौर, श्वेत, अमल, वलक्ष, शुक्ल, अवदात.

शहद – पुष्परस, मधु, आसव, रस, मकरन्द.

षंड – हीजड़ा, नपुंसक, नामर्द.

षडानन – षटमुख, कार्तिकेय, षाण्मातुर.

साँप – अहि, भुजंग, ब्याल, सर्प, नाग, विषधर, उरग, पवनासन.

सूर्य – रवि, सूरज, दिनकर, प्रभाकर, आदित्य, दिनेश, भास्कर, दिनकर, दिवाकर, भानु, आदित्य.

समूह – दल, झुंड, समुदाय, टोली, जत्था, मण्डली, वृंद, गण, पुंज, संघ, समुच्चय.

सभा – अधिवेशन, संगीति, परिषद, बैठक, महासभा.

सुन्दर – कलित, ललाम, मंजुल, रुचिर, चारु, रम्य, मनोहर, सुहावना, चित्ताकर्षक, रमणीक, कमनीय, उत्कृष्ट, उत्तम, सुरम्य.

सन्ध्या – सायंकाल, शाम, साँझ, प्रदोषकाल, गोधूलि.

संसार – जग, विश्व, जगत, लोक, दुनिया.

सोना – स्वर्ण, कंचन, कनक, हेम, कुंदन.

सिंह – केसरी, शेर, मृगपति, वनराज, शार्दूल, नाहर, सारंग, मृगराज.

समुद्र – सागर, पयोधि, उदधि, पारावार, नदीश, जलधि, सिंधु, रत्नाकर, वारिधि.

सम – सर्व, समस्त, सम्पूर्ण, पूर्ण, समग्र, अखिल, निखिल.

समीप – सन्निकट, आसन्न, निकट, पास.

स्त्री – सुन्दरी, कान्ता, कलत्र, वनिता, नारी, महिला, अबला, ललना, औरत, कामिनी, रमणी.

सुगंधि – सौरभ, सुरभि, महक, खुशबू.

स्वर्ग – सुरलोक, देवलोक, दिव्यधाम, ब्रह्मधाम, द्यौ, परमधाम, त्रिदिव, दयुलोक.

स्वर्ण – सुवर्ण, कंचन, हेन, हारक, जातरूप, सोना, तामरस, हिरण्य.

सरस्वती – गिरा, शारदा, भारती, वीणापाणि, विमला, वागीश, वागेश्वरी.

सहेली – आली, सखी, सहचरी, सजनी, सैरन्ध्री.

संसार – लोक, जग, जहान, जगत, विश्व.

ह से शुरू होने वाले पर्यायवाची शब्द :

हनुमान – पवनसुत, पवनकुमार, महावीर, रामदूत, मारुततनय, अंजनीपुत्र, आंजनेय, कपीश्वर, केशरीनंदन, बजरंगबली, मारुति.

हिमांशु – हिमकर, निशाकर, क्षपानाथ, चन्द्रमा, चन्द्र, निशिपति.

हंस – कलकंठ, मराल, सिपपक्ष, मानसौक.

हृदय – छाती, वक्ष, वक्षस्थल, हिय, उर.

हाथ – हस्त, कर, पाणि.

हाथी – हस्ती, कुंजर, कूम्भा, मतंग, वारण, गज, द्विप, करी, मदकल.

हस्त – हाथ, कर, पाणि, बाहु, भुजा.

हिमालय – हिमगिरी, हिमाचल, गिरिराज, पर्वतराज, नगेश.

हिरण – सुरभी, कुरग, मृग, सारंग, हिरन.

होंठ – अक्षर, ओष्ठ, ओंठ.

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https://www.myallinone.in/paryayvachi-shabd11-Feb-2020 1:55:19 pm
अलंकार की परिभाषा, भेद और उदाहरणhttps://www.myallinone.in/alankar
साहित्यों में रस और शब्द की शक्तियों की प्रासंगिकता गद्य और पद्य दोनों में ही की जाती है परंतु कविता में इन दोनों के अलावा भी अलंकार, छंद और बिंब का प्रयोग किया जाता है जो कविता में विशिष्टता लाने का काम करता है हालाँकि पाठ्यक्रम में कविताओं को अपना आधार मानकर ही अलंकार, छंद, बिंब और रस की विवेचना की जाती है।

उदाहरण :- ‘भूषण बिना न सोहई – कविता, बनिता मित्त।’

अलंकार के प्रयोग का आधार :
कोई भी कवी कथनीय वास्तु को अच्छी से अच्छी अभिव्यक्ति देने की सोच से अलंकारों को प्रयुक्त करता है जिनके द्वारा वह अपने भावों को उत्कर्ष प्रदान करता है या फिर रूप, गुण या क्रिया का अधिक अनुभव कराता है। कवी के मन का ओज ही अलंकारों का असली कारण होता है। जो व्यक्ति रुचिभेद आएँबर या चमत्कारप्रिय होता है वह व्यक्ति अपने शब्दों में शब्दालंकार का प्रयोग करता है लेकिन जो व्यक्ति भावुक होता है वह व्यक्ति अर्थालंकार का प्रयोग करता है।

अलंकार के भेद
शब्दालंकार
अर्थालंकार
उभयालंकार
1. शब्दालंकार
शब्दालंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है – शब्द + अलंकार। शब्द के दो रूप होते हैं – ध्वनी और अर्थ। ध्वनि के आधार पर शब्दालंकार की सृष्टी होती है। जब अलंकार किसी विशेष शब्द की स्थिति में ही रहे और उस शब्द की जगह पर कोई और पर्यायवाची शब्द के रख देने से उस शब्द का अस्तित्व न रहे उसे शब्दालंकार कहते हैं।

अर्थार्त जिस अलंकार में शब्दों को प्रयोग करने से चमत्कार हो जाता है और उन शब्दों की जगह पर समानार्थी शब्द को रखने से वो चमत्कार समाप्त हो जाये वहाँ शब्दालंकार होता है।

शब्दालंकार के भेद :-
अनुप्रास अलंकार
यमक अलंकार
पुनरुक्ति अलंकार
विप्सा अलंकार
वक्रोक्ति अलंकार
शलेष अलंकार
अनुप्रास अलंकार क्या होता है :-
अनुप्रास शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – अनु + प्रास | यहाँ पर अनु का अर्थ है- बार-बार और प्रास का अर्थ होता है – वर्ण। जब किसी वर्ण की बार – बार आवर्ती हो तब जो चमत्कार होता है उसे अनुप्रास अलंकार कहते है।

जैसे :- जन रंजन मंजन दनुज मनुज रूप सुर भूप।
विश्व बदर इव धृत उदर जोवत सोवत सूप।।

अनुप्रास के भेद :-
छेकानुप्रास अलंकार
वृत्यानुप्रास अलंकार
लाटानुप्रास अलंकार
अन्त्यानुप्रास अलंकार
श्रुत्यानुप्रास अलंकार
1. छेकानुप्रास अलंकार क्या होता है :- जहाँ पर स्वरुप और क्रम से अनेक व्यंजनों की आवृति एक बार हो वहाँ छेकानुप्रास अलंकार होता है।

जैसे :- रीझि रीझि रहसि रहसि हँसि हँसि उठै।
साँसैं भरि आँसू भरि कहत दई दई।।

2. वृत्यानुप्रास अलंकार क्या होता है :- जब एक व्यंजन की आवर्ती अनेक बार हो वहाँ वृत्यानुप्रास अलंकार कहते हैं।

जैसे :- “चामर-सी, चन्दन – सी, चंद – सी,
चाँदनी चमेली चारु चंद-सुघर है।”

3. लाटानुप्रास अलंकार क्या होता है :- जहाँ शब्द और वाक्यों की आवर्ती हो तथा प्रत्येक जगह पर अर्थ भी वही पर अन्वय करने पर भिन्नता आ जाये वहाँ लाटानुप्रास अलंकार होता है। अथार्त जब एक शब्द या वाक्य खंड की आवर्ती उसी अर्थ में हो वहाँ लाटानुप्रास अलंकार होता है।

जैसे :- तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी के पात्र समर्थ,
तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी थी जिनके अर्थ।

4. अन्त्यानुप्रास अलंकार क्या होता है :- जहाँ अंत में तुक मिलती हो वहाँ पर अन्त्यानुप्रास अलंकार होता है।

जैसे :- “लगा दी किसने आकर आग।
कहाँ था तू संशय के नाग?”

5. श्रुत्यानुप्रास अलंकार क्या होता है :- जहाँ पर कानों को मधुर लगने वाले वर्णों की आवर्ती हो उसे श्रुत्यानुप्रास अलंकार कहते है।

जैसे :- “दिनान्त था, थे दीननाथ डुबते,
सधेनु आते गृह ग्वाल बाल थे।”

2. यमक अलंकार क्या होता है :-
यमक शब्द का अर्थ होता है – दो। जब एक ही शब्द ज्यादा बार प्रयोग हो पर हर बार अर्थ अलग-अलग आये वहाँ पर यमक अलंकार होता है।

जैसे :- कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराए नर, वा पाये बौराये।


3. पुनरुक्ति अलंकार क्या है :-
पुनरुक्ति अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना है – पुन: +उक्ति। जब कोई शब्द दो बार दोहराया जाता है वहाँ पर पुनरुक्ति अलंकार होता है।

4. विप्सा अलंकार क्या है :-
जब आदर, हर्ष, शोक, विस्मयादिबोधक आदि भावों को प्रभावशाली रूप से व्यक्त करने के लिए शब्दों की पुनरावृत्ति को ही विप्सा अलंकार कहते है।

जैसे :- मोहि-मोहि मोहन को मन भयो राधामय।
राधा मन मोहि-मोहि मोहन मयी-मयी।।

5. वक्रोक्ति अलंकार क्या है :-
जहाँ पर वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का श्रोता अलग अर्थ निकाले उसे वक्रोक्ति अलंकार कहते है।

वक्रोक्ति अलंकार के भेद :-
काकु वक्रोक्ति अलंकार
श्लेष वक्रोक्ति अलंकार
1. काकु वक्रोक्ति अलंकार क्या है :- जब वक्ता के द्वारा बोले गये शब्दों का उसकी कंठ ध्वनी के कारण श्रोता कुछ और अर्थ निकाले वहाँ पर काकु वक्रोक्ति अलंकार होता है।

जैसे :- मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू।

2. श्लेष वक्रोक्ति अलंकार क्या है :- जहाँ पर श्लेष की वजह से वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का अलग अर्थ निकाला जाये वहाँ श्लेष वक्रोक्ति अलंकार होता है।

जैसे :- को तुम हौ इत आये कहाँ घनस्याम हौ तौ कितहूँ बरसो।
चितचोर कहावत है हम तौ तहां जाहुं जहाँ धन सरसों।।

6. श्लेष अलंकार क्या होता है :-
जहाँ पर कोई एक शब्द एक ही बार आये पर उसके अर्थ अलग अलग निकलें वहाँ पर श्लेष अलंकार होता है।

जैसे :- रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरै मोती मानस चून।।

अर्थ – यह दोहा रहीम जी का है जिसमें रहीम जी ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है जिसमें पानी का पहला अर्थ आदमी या मनुष्य के संदर्भ में है जिसका मतलब विनम्रता से है क्योंकि मनुष्य में हमेशा विनम्रता होनी चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ चमक या तेज से है जिसके बिना मोतियों का कोई मूल्य नहीं होता है। पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे को गूथने या जोड़ने में दिखाया गया है क्योंकि पानी के बिना आटे का अस्तित्व नम्र नहीं हो सकता है और मोती का मूल्य उसकी चमक के बिना नहीं हो सकता है उसी तरह से मनुष्य को भी अपने व्यवहार को हमेशा पानी की ही भांति विनम्र रखना चाहिए जिसके बिना उसका मूल्यह्रास होता है।

श्लेष अलंकार के भेद :
अभंग श्लेष अलंकार
सभंग श्लेष अलंकार
1. अभंग श्लेष अलंकार :- जिस अलंकार में शब्दों को बिना तोड़े ही एक से अधिक या अनेक अर्थ निकलते हों वहां पर अभंग श्लेष अलंकार होता है।

जैसे :- रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुस, चून।।

अर्थ – यह दोहा रहीम जी का है जिसमें रहीम जी ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है जिसमें पानी का पहला अर्थ आदमी या मनुष्य के संदर्भ में है जिसका मतलब विनम्रता से है क्योंकि मनुष्य में हमेशा विनम्रता होनी चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ चमक या तेज से है जिसके बिना मोतियों का कोई मूल्य नहीं होता है। पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे को गूथने या जोड़ने में दिखाया गया है क्योंकि पानी के बिना आटे का अस्तित्व नम्र नहीं हो सकता है और मोती का मूल्य उसकी चमक के बिना नहीं हो सकता है उसी तरह से मनुष्य को भी अपने व्यवहार को हमेशा पानी की ही भांति विनम्र रखना चाहिए जिसके बिना उसका मूल्यह्रास होता है।

2. सभंग श्लेष अलंकार :- जिस अलंकार में शब्दों को तोडना बहुत अधिक आवश्यक होता है क्योंकि शब्दों को तोड़े बिना उनका अर्थ न निकलता हो वहां पर सभंग श्लेष अलंकार होता है।

जैसे :- सखर सुकोमल मंजु, दोषरहित दूषण सहित।

2. अर्थालंकार क्या होता है
जहाँ पर अर्थ के माध्यम से काव्य में चमत्कार होता हो वहाँ अर्थालंकार होता है।

अर्थालंकार के भेद
उपमा अलंकार
रूपक अलंकार
उत्प्रेक्षा अलंकार
द्रष्टान्त अलंकार
संदेह अलंकार
अतिश्योक्ति अलंकार
उपमेयोपमा अलंकार
प्रतीप अलंकार
अनन्वय अलंकार
भ्रांतिमान अलंकार
दीपक अलंकार
अपहृति अलंकार
व्यतिरेक अलंकार
विभावना अलंकार
विशेषोक्ति अलंकार
अर्थान्तरन्यास अलंकार
उल्लेख अलंकार
विरोधाभाष अलंकार
असंगति अलंकार
मानवीकरण अलंकार
अन्योक्ति अलंकार
काव्यलिंग अलंकार
स्वभावोती अलंकार
1. उपमा अलंकार क्या होता है :-

उपमा शब्द का अर्थ होता है – तुलना। जब किसी व्यक्ति या वस्तु की तुलना किसी दूसरे यक्ति या वस्तु से की जाए वहाँ पर उपमा अलंकार होता है।

जैसे :- सागर-सा गंभीर ह्रदय हो,
गिरी-सा ऊँचा हो जिसका मन।

उपमा अलंकार के अंग :-

उपमेय
उपमान
वाचक शब्द
साधारण धर्म
1. उपमेय क्या होता है :- उपमेय का अर्थ होता है – उपमा देने के योग्य। अगर जिस वस्तु की समानता किसी दूसरी वस्तु से की जाये वहाँ पर उपमेय होता है।

2.उपमान क्या होता है :- उपमेय की उपमा जिससे दी जाती है उसे उपमान कहते हैं। अथार्त उपमेय की जिस के साथ समानता बताई जाती है उसे उपमान कहते हैं।

3. वाचक शब्द क्या होता है :- जब उपमेय और उपमान में समानता दिखाई जाती है तब जिस शब्द का प्रयोग किया जाता है उसे वाचक शब्द कहते हैं।

4. साधारण धर्म क्या होता है :- दो वस्तुओं के बीच समानता दिखाने के लिए जब किसी ऐसे गुण या धर्म की मदद ली जाती है जो दोनों में वर्तमान स्थिति में हो उसी गुण या धर्म को साधारण धर्म कहते हैं।

उपमा अलंकार के भेद :-

पूर्णोपमा अलंकार
लुप्तोपमा अलंकार
1. पूर्णोपमा अलंकार क्या होता है :- इसमें उपमा के सभी अंग होते हैं – उपमेय, उपमान, वाचक शब्द, साधारण धर्म आदि अंग होते हैं वहाँ पर पूर्णोपमा अलंकार होता है।

जैसे :- सागर-सा गंभीर ह्रदय हो,
गिरी-सा ऊँचा हो जिसका मन।

22.लुप्तोपमा अलंकार क्या होता है :- इसमें उपमा के चारों अगों में से यदि एक या दो का या फिर तीन का न होना पाया जाए वहाँ पर लुप्तोपमा अलंकार होता है।

जैसे :- कल्पना सी अतिशय कोमल। जैसा हम देख सकते हैं कि इसमें उपमेय नहीं है तो इसलिए यह लुप्तोपमा का उदहारण है।

2. रूपक अलंकार क्या होता है :-

जहाँ पर उपमेय और उपमान में कोई अंतर न दिखाई दे वहाँ रूपक अलंकार होता है अथार्त जहाँ पर उपमेय और उपमान के बीच के भेद को समाप्त करके उसे एक कर दिया जाता है वहाँ पर रूपक अलंकार होता है।

जैसे :- “उदित उदय गिरी मंच पर, रघुवर बाल पतंग।
विगसे संत-सरोज सब, हरषे लोचन भ्रंग।।”

रूपक अलंकार की निम्न बातें :-

उपमेय को उपमान का रूप देना।
वाचक शब्द का लोप होना।
उपमेय का भी साथ में वर्णन होना।
रूपक अलंकार के भेद :-

सम रूपक अलंकार
अधिक रूपक अलंकार
न्यून रूपक अलंकार
1. सम रूपक अलंकार क्या होता है :- इसमें उपमेय और उपमान में समानता दिखाई जाती है वहाँ पर सम रूपक अलंकार होता है।

जैसे :- बीती विभावरी जागरी. अम्बर – पनघट में डुबा रही, तारघट उषा – नागरी।

2.अधिक रूपक अलंकार क्या होता है :- जहाँ पर उपमेय में उपमान की तुलना में कुछ न्यूनता का बोध होता है वहाँ पर अधिक रूपक अलंकार होता है।

3. न्यून रूपक अलंकार क्या होता है :- इसमें उपमान की तुलना में उपमेय को न्यून दिखाया जाता है वहाँ पर न्यून रूपक अलंकार होता है।

जैसे :- जनम सिन्धु विष बन्धु पुनि, दीन मलिन सकलंक
सिय मुख समता पावकिमि चन्द्र बापुरो रंक।।

3. उत्प्रेक्षा अलंकार क्या होता है :-

जहाँ पर उपमान के न होने पर उपमेय को ही उपमान मान लिया जाए। अथार्त जहाँ पर अप्रस्तुत को प्रस्तुत मान लिया जाए वहाँ पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। अगर किसी पंक्ति में मनु, जनु, मेरे जानते, मनहु, मानो, निश्चय, ईव आदि आते हैं वहां पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।

जैसे :- सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल
बाहर सोहत मनु पिये, दावानल की ज्वाल।।

यह भी पढ़ें : Sandhi In Hindi , Paryayvachi Shabd

उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद :-

वस्तुप्रेक्षा अलंकार
हेतुप्रेक्षा अलंकार
फलोत्प्रेक्षा अलंकार
1. वस्तुप्रेक्षा अलंकार क्या होता है :- जहाँ पर प्रस्तुत में अप्रस्तुत की संभावना दिखाई जाए वहाँ पर वस्तुप्रेक्षा अलंकार होता है।

जैसे :- “सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल।
बाहर लसत मनो पिये, दावानल की ज्वाल।।”

2. हेतुप्रेक्षा अलंकार क्या होता है :- जहाँ अहेतु में हेतु की सम्भावना देखी जाती है। अथार्त वास्तविक कारण को छोडकर अन्य हेतु को मान लिया जाए वहाँ हेतुप्रेक्षा अलंकार होता है।

3. फलोत्प्रेक्षा अलंकार क्या होता है :- इसमें वास्तविक फल के न होने पर भी उसी को फल मान लिया जाता है वहाँ पर फलोत्प्रेक्षा अलंकार होता है।

जैसे :- खंजरीर नहीं लखि परत कुछ दिन साँची बात।
बाल द्रगन सम हीन को करन मनो तप जात।।

4. दृष्टान्त अलंकार क्या होता है :-

जहाँ दो सामान्य या दोनों विशेष वाक्यों में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव होता हो वहाँ पर दृष्टान्त अलंकार होता है। इस अलंकार में उपमेय रूप में कहीं गई बात से मिलती-जुलती बात उपमान रूप में दुसरे वाक्य में होती है। यह अलंकार उभयालंकार का भी एक अंग है।

जैसे :- ‘एक म्यान में दो तलवारें, कभी नहीं रह सकती हैं।

किसी और पर प्रेम नारियाँ, पति का क्या सह सकती है।।

5. संदेह अलंकार क्या होता है :-

जब उपमेय और उपमान में समता देखकर यह निश्चय नहीं हो पाता कि उपमान वास्तव में उपमेय है या नहीं। जब यह दुविधा बनती है , तब संदेह अलंकार होता है अथार्त जहाँ पर किसी व्यक्ति या वस्तु को देखकर संशय बना रहे वहाँ संदेह अलंकार होता है। यह अलंकार उभयालंकार का भी एक अंग है।

जैसे :- यह काया है या शेष उसी की छाया,
क्षण भर उनकी कुछ नहीं समझ में आया।

संदेह अलंकार की मुख्य बातें :-

विषय का अनिश्चित ज्ञान।
यह अनिश्चित समानता पर निर्भर हो।
अनिश्चय का चमत्कारपूर्ण वर्णन हो।
6. अतिश्योक्ति अलंकार क्या होता है :-

जब किसी व्यक्ति या वस्तु का वर्णन करने में लोक समाज की सीमा या मर्यादा टूट जाये उसे अतिश्योक्ति अलंकार कहते हैं अथार्त जब किसी वस्तु का बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाये वहां पर अतिश्योक्ति अलंकार होता है।

जैसे :- हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आगि।
सगरी लंका जल गई, गये निसाचर भागि।

7. उपमेयोपमा अलंकार क्या होता है :-

इस अलंकार में उपमेय और उपमान को परस्पर उपमान और उपमेय बनाने की कोशिश की जाती है इसमें उपमेय और उपमान की एक दूसरे से उपमा दी जाती है।

जैसे :- तौ मुख सोहत है ससि सो अरु सोहत है ससि तो मुख जैसो।

8. प्रतीप अलंकार क्या होता है :-

इसका अर्थ होता है उल्टा। उपमा के अंगों में उल्ट – फेर करने से अथार्त उपमेय को उपमान के समान न कहकर उलट कर उपमान को ही उपमेय कहा जाता है वहाँ प्रतीप अलंकार होता है। इस अलंकार में दो वाक्य होते हैं एक उपमेय वाक्य और एक उपमान वाक्य। लेकिन इन दोनों वाक्यों में सदृश्य का साफ कथन नहीं होता, वह व्यंजित रहता है। इन दोनों में साधारण धर्म एक ही होता है परन्तु उसे अलग-अलग ढंग से कहा जाता है।

जैसे :- “नेत्र के समान कमल है।”

9. अनन्वय अलंकार क्या होता है :-

जब उपमेय की समता में कोई उपमान नहीं आता और कहा जाता है कि उसके समान वही है, तब अनन्वय अलंकार होता है।

जैसे :- “यद्यपि अति आरत – मारत है. भारत के सम भारत है।

10. भ्रांतिमान अलंकार क्या होता है :-

जब उपमेय में उपमान के होने का भ्रम हो जाये वहाँ पर भ्रांतिमान अलंकार होता है अथार्त जहाँ उपमान और उपमेय दोनों को एक साथ देखने पर उपमान का निश्चयात्मक भ्रम हो जाये मतलब जहाँ एक वस्तु को देखने पर दूसरी वस्तु का भ्रम हो जाए वहाँ भ्रांतिमान अलंकार होता है। यह अलंकार उभयालंकार का भी अंग माना जाता है।

जैसे :- पायें महावर देन को नाईन बैठी आय ।
फिरि-फिरि जानि महावरी, एडी भीड़त जाये।।

11.दीपक अलंकार क्या होता है :-

जहाँ पर प्रस्तुत और अप्रस्तुत का एक ही धर्म स्थापित किया जाता है वहाँ पर दीपक अलंकार होता है।

जैसे :- चंचल निशि उदवस रहें, करत प्रात वसिराज।
अरविंदन में इंदिरा, सुन्दरि नैनन लाज।।

12. अपहृति अलंकार क्या होता है :-

अपहृति का अर्थ होता है छिपाव। जब किसी सत्य बात या वस्तु को छिपाकर उसके स्थान पर किसी झूठी वस्तु की स्थापना की जाती है वहाँ अपहृति अलंकार होता है। यह अलंकार उभयालंकार का भी एक अंग है।

जैसे :- “सुनहु नाथ रघुवीर कृपाला,
बन्धु न होय मोर यह काला।”

13. व्यतिरेक अलंकार क्या होता है :-

व्यतिरेक का शाब्दिक अर्थ होता है आधिक्य। व्यतिरेक में कारण का होना जरुरी है। अत: जहाँ उपमान की अपेक्षा अधिक गुण होने के कारण उपमेय का उत्कर्ष हो वहाँ पर व्यतिरेक अलंकार होता है।

जैसे :- का सरवरि तेहिं देउं मयंकू। चांद कलंकी वह निकलंकू।।
मुख की समानता चन्द्रमा से कैसे दूँ?

14. विभावना अलंकार क्या होता है :-

जहाँ पर कारण के न होते हुए भी कार्य का हुआ जाना पाया जाए वहाँ पर विभावना अलंकार होता है।

जैसे :- बिनु पग चलै सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु वाणी वक्ता बड़ जोगी।


15.विशेषोक्ति अलंकार क्या होता है :-

काव्य में जहाँ कार्य सिद्धि के समस्त कारणों के विद्यमान रहते हुए भी कार्य न हो वहाँ पर विशेषोक्ति अलंकार होता है।

जैसे :- नेह न नैनन को कछु, उपजी बड़ी बलाय।
नीर भरे नित-प्रति रहें, तऊ न प्यास बुझाई।।

16.अर्थान्तरन्यास अलंकार क्या होता है :-

जब किसी सामान्य कथन से विशेष कथन का अथवा विशेष कथन से सामान्य कथन का समर्थन किया जाये वहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है।

जैसे :- बड़े न हूजे गुनन बिनु, बिरद बडाई पाए।
कहत धतूरे सों कनक, गहनो गढ़ो न जाए।।

17. उल्लेख अलंकार क्या होता है :-

जहाँ पर किसी एक वस्तु को अनेक रूपों में ग्रहण किया जाए, तो उसके अलग-अलग भागों में बटने को उल्लेख अलंकार कहते हैं। अथार्त जब किसी एक वस्तु को अनेक प्रकार से बताया जाये वहाँ पर उल्लेख अलंकार होता है।

जैसे :- विन्दु में थीं तुम सिन्धु अनन्त एक सुर में समस्त संगीत।

18. विरोधाभाष अलंकार क्या होता है :-

जब किसी वस्तु का वर्णन करने पर विरोध न होते हुए भी विरोध का आभाष हो वहाँ पर विरोधाभास अलंकार होता है।

जैसे :- ‘आग हूँ जिससे ढुलकते बिंदु हिमजल के।
शून्य हूँ जिसमें बिछे हैं पांवड़े पलकें।’

19. असंगति अलंकार क्या होता है :-

जहाँ आपतात: विरोध दृष्टिगत होते हुए, कार्य और कारण का वैयाधिकरन्य रणित हो वहाँ पर असंगति अलंकार होता है।

जैसे :- “ह्रदय घाव मेरे पीर रघुवीरै।”

20. मानवीकरण अलंकार क्या होता है :-

जहाँ पर काव्य में जड़ में चेतन का आरोप होता है वहाँ पर मानवीकरण अलंकार होता है अथार्त जहाँ जड़ प्रकृति पर मानवीय भावनाओं और क्रियांओं का आरोप हो वहाँ पर मानवीकरण अलंकार होता है। जब प्रकृति के द्वारा निर्मित चीजों में मानवीय भावनाओं के होने का वर्णन किया जाए वहां पर मानवीकरण अलंकार होता है।

जैसे :- बीती विभावरी जागरी, अम्बर पनघट में डुबो रही तास घट उषा नगरी।

21. अन्योक्ति अलंकार क्या होता है :-

जहाँ पर किसी उक्ति के माध्यम से किसी अन्य को कोई बात कही जाए वहाँ पर अन्योक्ति अलंकार होता है।

जैसे :- फूलों के आस-पास रहते हैं, फिर भी काँटे उदास रहते हैं।

22. काव्यलिंग अलंकार क्या होता है :-

जहाँ पर किसी युक्ति से समर्थित की गयी बात को काव्यलिंग अलंकार कहते हैं अथार्त जहाँ पर किसी बात के समर्थन में कोई-न-कोई युक्ति या कारण जरुर दिया जाता है।

जैसे :- कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।
उहि खाय बौरात नर, इहि पाए बौराए।।

23. स्वभावोक्ति अलंकार क्या होता है :-

किसी वस्तु के स्वाभाविक वर्णन को स्वभावोक्ति अलंकार कहते हैं।

जैसे :- सीस मुकुट कटी काछनी, कर मुरली उर माल।
इहि बानिक मो मन बसौ, सदा बिहारीलाल।।

3. उभयालंकार
जो अलंकार शब्द और अर्थ दोनों पर आधारित रहकर दोनों को चमत्कारी करते हैं वहाँ उभयालंकार होता है।

जैसे :- ‘कजरारी अंखियन में कजरारी न लखाय।’

अलंकारों से सम्बन्धित प्रश्न – उत्तर :-

इन उदाहरणों में कौन-कौन से अलंकार हैं —–

प्रात: नभ था बहुत नीला शंख जैसे।
तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के।
मखमल के झूल पड़े हाथी सा टीला।
मिटा मोदु मन भय मलीने, विधि निधि दिन्ह लेत जनु छीने।
राम नाम कलि काम तरु, राम भगति सुर धेनु।
उत्तर – (1) उत्प्रेक्षा, (2) यमक, (3) उपमा, (4) उत्प्रेक्षा, (5) रूपक

कुछ प्रश्नों के उत्तर स्वं दें –

अम्बर पनघट में डुबो रही तारा घट उषा नागरी।
वः दीप शिखा सी शांत भाव में लीन।
सिर फट गया उसका मानो अरुण रंग का घड़ा हो।
तब तो बहता समय शिला सा जम जायेगा।
मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर।

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https://www.myallinone.in/alankar11-Feb-2020 1:42:39 pm
संधि एवं संधि विच्छेद परिभाषा, प्रकार, उदाहरणhttps://www.myallinone.in/sandhi-vichedजब दो शब्द मिलते हैं तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की पहली ध्वनि आपस में मिलकर जो परिवर्तन लाती हैं उसे संधि कहते हैं। अथार्त संधि किये गये शब्दों को अलग-अलग करके पहले की तरह करना ही संधि विच्छेद कहलाता है। अथार्त जब दो शब्द आपस में मिलकर कोई तीसरा शब्द बनती हैं तब जो परिवर्तन होता है , उसे संधि कहते हैं।
उदहारण :- हिमालय = हिम + आलय , सत् + आनंद =सदानंद।

संधि के प्रकार (Sandhi Ke Prakar) :
संधि तीन प्रकार की होती हैं :-

स्वर संधि
व्यंजन संधि
विसर्ग संधि


1. स्वर संधि क्या होती है :- जब स्वर के साथ स्वर का मेल होता है तब जो परिवर्तन होता है उसे स्वर संधि कहते हैं। हिंदी में स्वरों की संख्या ग्यारह होती है। बाकी के अक्षर व्यंजन होते हैं। जब दो स्वर मिलते हैं जब उससे जो तीसरा स्वर बनता है उसे स्वर संधि कहते हैं।

उदहारण :- विद्या + आलय = विद्यालय।

स्वर संधि पांच प्रकार की होती हैं :-
(क) दीर्घ संधि

(ख) गुण संधि

(ग) वृद्धि संधि

(घ) यण संधि

(ड)अयादि संधि

(क) दीर्घ संधि का होती है :- जब ( अ , आ ) के साथ ( अ , आ ) हो तो ‘ आ ‘ बनता है , जब ( इ , ई ) के साथ ( इ , ई ) हो तो ‘ ई ‘ बनता है , जब ( उ , ऊ ) के साथ ( उ , ऊ ) हो तो ‘ ऊ ‘ बनता है। अथार्त सूत्र – अक: सवर्ण – दीर्घ: मतलब अक प्रत्याहार के बाद अगर सवर्ण हो तो दो मिलकर दीर्घ बनते हैं। दूसरे शब्दों में हम कहें तो जब दो सुजातीय स्वर आस – पास आते हैं तब जो स्वर बनता है उसे सुजातीय दीर्घ स्वर कहते हैं , इसी को स्वर संधि की दीर्घ संधि कहते हैं। इसे ह्रस्व संधि भी कहते हैं।

उदहारण :- धर्म + अर्थ = धर्मार्थ

पुस्तक + आलय = पुस्तकालय
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
रवि + इंद्र = रविन्द्र
गिरी +ईश = गिरीश
मुनि + ईश =मुनीश
मुनि +इंद्र = मुनींद्र
भानु + उदय = भानूदय
वधू + ऊर्जा = वधूर्जा
विधु + उदय = विधूदय
भू + उर्जित = भुर्जित।

2. गुण संधि क्या होती है :- जब ( अ , आ ) के साथ ( इ , ई ) हो तो ‘ ए ‘ बनता है , जब ( अ , आ )के साथ ( उ , ऊ ) हो तो ‘ ओ ‘बनता है , जब ( अ , आ ) के साथ ( ऋ ) हो तो ‘ अर ‘ बनता है। उसे गुण संधि कहते हैं।

उदहारण :-

नर + इंद्र + नरेंद्र
सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र
ज्ञान + उपदेश = ज्ञानोपदेश
भारत + इंदु = भारतेन्दु
देव + ऋषि = देवर्षि
सर्व + ईक्षण = सर्वेक्षण
3. वृद्धि संधि क्या होती है :- जब ( अ , आ ) के साथ ( ए , ऐ ) हो तो ‘ ऐ ‘ बनता है और जब ( अ , आ ) के साथ ( ओ , औ )हो तो ‘ औ ‘ बनता है। उसे वृधि संधि कहते हैं।

उदहारण :-

मत+एकता = मतैकता
एक +एक =एकैक
धन + एषणा = धनैषणा
सदा + एव = सदैव
महा + ओज = महौज
4. यण संधि क्या होती है :- जब ( इ , ई ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ य ‘ बन जाता है , जब ( उ , ऊ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ व् ‘ बन जाता है , जब ( ऋ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ र ‘ बन जाता है। यण संधि के तीन प्रकार के संधि युक्त्त पद होते हैं। (1) य से पूर्व आधा व्यंजन होना चाहिए। (2) व् से पूर्व आधा व्यंजन होना चाहिए। (3) शब्द में त्र होना चाहिए।

यण स्वर संधि में एक शर्त भी दी गयी है कि य और त्र में स्वर होना चाहिए और उसी से बने हुए शुद्ध व् सार्थक स्वर को + के बाद लिखें। उसे यण संधि कहते हैं।

उदहारण :-

इति + आदि = इत्यादि
परी + आवरण = पर्यावरण
अनु + अय = अन्वय
सु + आगत = स्वागत
अभी + आगत = अभ्यागत
5. अयादि संधि क्या होती है :- जब ( ए , ऐ , ओ , औ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ ए – अय ‘ में , ‘ ऐ – आय ‘ में , ‘ ओ – अव ‘ में, ‘ औ – आव ‘ ण जाता है। य , व् से पहले व्यंजन पर अ , आ की मात्रा हो तो अयादि संधि हो सकती है लेकिन अगर और कोई विच्छेद न निकलता हो तो + के बाद वाले भाग को वैसा का वैसा लिखना होगा। उसे अयादि संधि कहते हैं।


उदहारण :-

ने + अन = नयन
नौ + इक = नाविक
भो + अन = भवन
पो + इत्र = पवित्र
2. व्यंजन संधि क्या होती है :- जब व्यंजन को व्यंजन या स्वर के साथ मिलाने से जो परिवर्तन होता है , उसे व्यंजन संधि कहते हैं।

उदहारण :-

दिक् + अम्बर = दिगम्बर
अभी + सेक = अभिषेक
व्यंजन संधि के 13 नियम होते हैं :-

(1) जब किसी वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् का मिलन किसी वर्ग के तीसरे या चौथे वर्ण से या य्, र्, ल्, व्, ह से या किसी स्वर से हो जाये तो क् को ग् , च् को ज् , ट् को ड् , त् को द् , और प् को ब् में बदल दिया जाता है अगर स्वर मिलता है तो जो स्वर की मात्रा होगी वो हलन्त वर्ण में लग जाएगी लेकिन अगर व्यंजन का मिलन होता है तो वे हलन्त ही रहेंगे।

उदहारण :- क् के ग् में बदलने के उदहारण –

दिक् + अम्बर = दिगम्बर
दिक् + गज = दिग्गज
वाक् +ईश = वागीश
च् के ज् में बदलने के उदहारण :-

अच् +अन्त = अजन्त
अच् + आदि =अजादी
ट् के ड् में बदलन के उदहारण :-

षट् + आनन = षडानन
षट् + यन्त्र = षड्यन्त्र
षड्दर्शन = षट् + दर्शन
षड्विकार = षट् + विकार
षडंग = षट् + अंग
त् के द् में बदलने के उदहारण :-

तत् + उपरान्त = तदुपरान्त
सदाशय = सत् + आशय
तदनन्तर = तत् + अनन्तर
उद्घाटन = उत् + घाटन
जगदम्बा = जगत् + अम्बा
प् के ब् में बदलने के उदहारण :-

अप् + द = अब्द
अब्ज = अप् + ज
(2) यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मिलन न या म वर्ण ( ङ,ञ ज, ण, न, म) के साथ हो तो क् को ङ्, च् को ज्, ट् को ण्, त् को न्, तथा प् को म् में बदल दिया जाता है।

उदहारण :- क् के ङ् में बदलने के उदहारण :-

वाक् + मय = वाङ्मय
दिङ्मण्डल = दिक् + मण्डल
प्राङ्मुख = प्राक् + मुख
ट् के ण् में बदलने के उदहारण :-

षट् + मास = षण्मास
षट् + मूर्ति = षण्मूर्ति
षण्मुख = षट् + मुख
त् के न् में बदलने के उदहारण :-

उत् + नति = उन्नति
जगत् + नाथ = जगन्नाथ
उत् + मूलन = उन्मूलन
प् के म् में बदलने के उदहारण :-

अप् + मय = अम्मय
(3) जब त् का मिलन ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व से या किसी स्वर से हो तो द् बन जाता है। म के साथ क से म तक के किसी भी वर्ण के मिलन पर ‘ म ‘ की जगह पर मिलन वाले वर्ण का अंतिम नासिक वर्ण बन जायेगा।

उदहारण :- म् + क ख ग घ ङ के उदहारण :-

सम् + कल्प = संकल्प/सटड्ढन्ल्प
सम् + ख्या = संख्या
सम् + गम = संगम
शंकर = शम् + कर
म् + च, छ, ज, झ, ञ के उदहारण :-

सम् + चय = संचय
किम् + चित् = किंचित
सम् + जीवन = संजीवन
म् + ट, ठ, ड, ढ, ण के उदहारण :-

दम् + ड = दण्ड/दंड
खम् + ड = खण्ड/खंड
म् + त, थ, द, ध, न के उदहारण :-

सम् + तोष = सन्तोष/संतोष
किम् + नर = किन्नर
सम् + देह = सन्देह
म् + प, फ, ब, भ, म के उदहारण :-

सम् + पूर्ण = सम्पूर्ण/संपूर्ण
सम् + भव = सम्भव/संभव
त् + ग , घ , ध , द , ब , भ ,य , र , व् के उदहारण :-

सत् + भावना = सद्भावना
जगत् + ईश =जगदीश
भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति
तत् + रूप = तद्रूपत
सत् + धर्म = सद्धर्म
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(4) त् से परे च् या छ् होने पर च, ज् या झ् होने पर ज्, ट् या ठ् होने पर ट्, ड् या ढ् होने पर ड् और ल होने पर ल् बन जाता है। म् के साथ य, र, ल, व, श, ष, स, ह में से किसी भी वर्ण का मिलन होने पर ‘म्’ की जगह पर अनुस्वार ही लगता है।

उदहारण :- म + य , र , ल , व् , श , ष , स , ह के उदहारण :-

सम् + रचना = संरचना
सम् + लग्न = संलग्न
सम् + वत् = संवत्
सम् + शय = संशय
त् + च , ज , झ , ट , ड , ल के उदहारण :-

उत् + चारण = उच्चारण
सत् + जन = सज्जन
उत् + झटिका = उज्झटिका
तत् + टीका =तट्टीका
उत् + डयन = उड्डयन
उत् +लास = उल्लास
(5)जब त् का मिलन अगर श् से हो तो त् को च् और श् को छ् में बदल दिया जाता है। जब त् या द् के साथ च या छ का मिलन होता है तो त् या द् की जगह पर च् बन जाता है।

उदहारण :-

उत् + चारण = उच्चारण
शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र
उत् + छिन्न = उच्छिन्न
त् + श् के उदहारण :-

उत् + श्वास = उच्छ्वास
उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट
सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र
(6) जब त् का मिलन ह् से हो तो त् को द् और ह् को ध् में बदल दिया जाता है। त् या द् के साथ ज या झ का मिलन होता है तब त् या द् की जगह पर ज् बन जाता है।

उदहारण :-

सत् + जन = सज्जन
जगत् + जीवन = जगज्जीवन
वृहत् + झंकार = वृहज्झंकार
त् + ह के उदहारण :-

उत् + हार = उद्धार
उत् + हरण = उद्धरण
तत् + हित = तद्धित
(7) स्वर के बाद अगर छ् वर्ण आ जाए तो छ् से पहले च् वर्ण बढ़ा दिया जाता है। त् या द् के साथ ट या ठ का मिलन होने पर त् या द् की जगह पर ट् बन जाता है। जब त् या द् के साथ ‘ड’ या ढ की मिलन होने पर त् या द् की जगह पर‘ड्’बन जाता है।

उदहारण :-

तत् + टीका = तट्टीका
वृहत् + टीका = वृहट्टीका
भवत् + डमरू = भवड्डमरू
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, + छ के उदहारण :-

स्व + छंद = स्वच्छंद
आ + छादन =आच्छादन
संधि + छेद = संधिच्छेद
अनु + छेद =अनुच्छेद
(8) अगर म् के बाद क् से लेकर म् तक कोई व्यंजन हो तो म् अनुस्वार में बदल जाता है। त् या द् के साथ जब ल का मिलन होता है तब त् या द् की जगह पर ‘ल्’ बन जाता है।

उदहारण :-

उत् + लास = उल्लास
तत् + लीन = तल्लीन
विद्युत् + लेखा = विद्युल्लेखा
म् + च् , क, त, ब , प के उदहारण :-

किम् + चित = किंचित
किम् + कर = किंकर
सम् +कल्प = संकल्प
सम् + चय = संचयम
सम +तोष = संतोष
सम् + बंध = संबंध
सम् + पूर्ण = संपूर्ण
(9) म् के बाद म का द्वित्व हो जाता है। त् या द् के साथ ‘ह’ के मिलन पर त् या द् की जगह पर द् तथा ह की जगह पर ध बन जाता है।

उदहारण :-

उत् + हार = उद्धार/उद्धार
उत् + हृत = उद्धृत/उद्धृत
पद् + हति = पद्धति
म् + म के उदहारण :-

सम् + मति = सम्मति
सम् + मान = सम्मान
(10) म् के बाद य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह् में से कोई व्यंजन आने पर म् का अनुस्वार हो जाता है।‘त् या द्’ के साथ ‘श’ के मिलन पर त् या द् की जगह पर ‘च्’ तथा ‘श’ की जगह पर ‘छ’ बन जाता है।

उदहारण :-

उत् + श्वास = उच्छ्वास
उत् + शृंखल = उच्छृंखल
शरत् + शशि = शरच्छशि
म् + य, र, व्,श, ल, स, के उदहारण :-

सम् + योग = संयोग
सम् + रक्षण = संरक्षण
सम् + विधान = संविधान
सम् + शय =संशय
सम् + लग्न = संलग्न
सम् + सार = संसार
(11) ऋ, र्, ष् से परे न् का ण् हो जाता है। परन्तु चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, श और स का व्यवधान हो जाने पर न् का ण् नहीं होता। किसी भी स्वर के साथ ‘छ’ के मिलन पर स्वर तथा ‘छ’ के बीच ‘च्’ आ जाता है।

उदहारण :-

आ + छादन = आच्छादन
अनु + छेद = अनुच्छेद
शाला + छादन = शालाच्छादन
स्व + छन्द = स्वच्छन्द
र् + न, म के उदहारण :-

परि + नाम = परिणाम
प्र + मान = प्रमाण
(12) स् से पहले अ, आ से भिन्न कोई स्वर आ जाए तो स् को ष बना दिया जाता है।

उदहारण :-

वि + सम = विषम
अभि + सिक्त = अभिषिक्त
अनु + संग = अनुषंग
भ् + स् के उदहारण :-

अभि + सेक = अभिषेक
नि + सिद्ध = निषिद्ध
वि + सम + विषम
(13)यदि किसी शब्द में कही भी ऋ, र या ष हो एवं उसके साथ मिलने वाले शब्द में कहीं भी ‘न’ हो तथा उन दोनों के बीच कोई भी स्वर,क, ख ग, घ, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व में से कोई भी वर्ण हो तो सन्धि होने पर ‘न’ के स्थान पर ‘ण’ हो जाता है। जब द् के साथ क, ख, त, थ, प, फ, श, ष, स, ह का मिलन होता है तब द की जगह पर त् बन जाता है।

उदहारण :-

राम + अयन = रामायण
परि + नाम = परिणाम
नार + अयन = नारायण
संसद् + सदस्य = संसत्सदस्य
तद् + पर = तत्पर
सद् + कार = सत्कार
विसर्ग संधि क्या होती है :-
विसर्ग के बाद जब स्वर या व्यंजन आ जाये तब जो परिवर्तन होता है उसे विसर्ग संधि कहते हैं।

उदहारण :-

मन: + अनुकूल = मनोनुकूल
नि:+अक्षर = निरक्षर
नि: + पाप =निष्पाप
विसर्ग संधि के 10 नियम होते हैं :-
(1) विसर्ग के साथ च या छ के मिलन से विसर्ग के जगह पर ‘श्’बन जाता है। विसर्ग के पहले अगर ‘अ’और बाद में भी ‘अ’ अथवा वर्गों के तीसरे, चौथे , पाँचवें वर्ण, अथवा य, र, ल, व हो तो विसर्ग का ओ हो जाता है।

उदहारण :-

मनः + अनुकूल = मनोनुकूल ; अधः + गति = अधोगति ; मनः + बल = मनोबल

निः + चय = निश्चय
दुः + चरित्र = दुश्चरित्र
ज्योतिः + चक्र = ज्योतिश्चक्र
निः + छल = निश्छल
विच्छेद

तपश्चर्या = तपः + चर्या
अन्तश्चेतना = अन्तः + चेतना
हरिश्चन्द्र = हरिः + चन्द्र
अन्तश्चक्षु = अन्तः + चक्षु
(2) विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में कोई स्वर हो, वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण अथवा य्, र, ल, व, ह में से कोई हो तो विसर्ग का र या र् हो जाता ह। विसर्ग के साथ ‘श’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर भी ‘श्’ बन जाता है।

दुः + शासन = दुश्शासन
यशः + शरीर = यशश्शरीर
निः + शुल्क = निश्शुल्क
विच्छेद

निश्श्वास = निः + श्वास
चतुश्श्लोकी = चतुः + श्लोकी
निश्शंक = निः + शंक
निः + आहार = निराहार
निः + आशा = निराशा
निः + धन = निर्धन
(3) विसर्ग से पहले कोई स्वर हो और बाद में च, छ या श हो तो विसर्ग का श हो जाता है। विसर्ग के साथ ट, ठ या ष के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जाता है।

धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
चतुः + टीका = चतुष्टीका
चतुः + षष्टि = चतुष्षष्टि
निः + चल = निश्चल
निः + छल = निश्छल
दुः + शासन = दुश्शासन
(4)विसर्ग के बाद यदि त या स हो तो विसर्ग स् बन जाता है। यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर हो तथा विसर्ग के साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण क, ख, प, फ में से कोई भी हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जायेगा।

निः + कलंक = निष्कलंक
दुः + कर = दुष्कर
आविः + कार = आविष्कार
चतुः + पथ = चतुष्पथ
निः + फल = निष्फल
विच्छेद

निष्काम = निः + काम
निष्प्रयोजन = निः + प्रयोजन
बहिष्कार = बहिः + कार
निष्कपट = निः + कपट
नमः + ते = नमस्ते
निः + संतान = निस्संतान
दुः + साहस = दुस्साहस
(5) विसर्ग से पहले इ, उ और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ष हो जाता है। यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद क, ख, प, फ हो तो सन्धि होने पर विसर्ग भी ज्यों का त्यों बना रहेगा।

अधः + पतन = अध: पतन
प्रातः + काल = प्रात: काल
अन्त: + पुर = अन्त: पुर
वय: क्रम = वय: क्रम
विच्छेद

रज: कण = रज: + कण
तप: पूत = तप: + पूत
पय: पान = पय: + पान
अन्त: करण = अन्त: + करण
अपवाद

भा: + कर = भास्कर
नम: + कार = नमस्कार
पुर: + कार = पुरस्कार
श्रेय: + कर = श्रेयस्कर
बृह: + पति = बृहस्पति
पुर: + कृत = पुरस्कृत
तिर: + कार = तिरस्कार
निः + कलंक = निष्कलंक
चतुः + पाद = चतुष्पाद
निः + फल = निष्फल
(6) विसर्ग से पहले अ, आ हो और बाद में कोई भिन्न स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। विसर्ग के साथ त या थ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जायेगा।

अन्त: + तल = अन्तस्तल
नि: + ताप = निस्ताप
दु: + तर = दुस्तर
नि: + तारण = निस्तारण
विच्छेद

निस्तेज = निः + तेज
नमस्ते = नम: + ते
मनस्ताप = मन: + ताप
बहिस्थल = बहि: + थल
निः + रोग = निरोग
निः + रस = नीरस
(7) विसर्ग के बाद क, ख अथवा प, फ होने पर विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता। विसर्ग के साथ ‘स’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जाता है।

नि: + सन्देह = निस्सन्देह
दु: + साहस = दुस्साहस
नि: + स्वार्थ = निस्स्वार्थ
दु: + स्वप्न = दुस्स्वप्न
विच्छेद

निस्संतान = नि: + संतान
दुस्साध्य = दु: + साध्य
मनस्संताप = मन: + संताप
पुनस्स्मरण = पुन: + स्मरण
अंतः + करण = अंतःकरण
(8) यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘इ’ व ‘उ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद ‘र’ हो तो सन्धि होने पर विसर्ग का तो लोप हो जायेगा साथ ही ‘इ’ व ‘उ’ की मात्रा ‘ई’ व ‘ऊ’ की हो जायेगी।

नि: + रस = नीरस
नि: + रव = नीरव
नि: + रोग = नीरोग
दु: + राज = दूराज
विच्छेद

नीरज = नि: + रज
नीरन्द्र = नि: + रन्द्र
चक्षूरोग = चक्षु: + रोग
दूरम्य = दु: + रम्य
(9) विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ के अतिरिक्त अन्य किसी स्वर के मेल पर विसर्ग का लोप हो जायेगा तथा अन्य कोई परिवर्तन नहीं होगा।

अत: + एव = अतएव
मन: + उच्छेद = मनउच्छेद
पय: + आदि = पयआदि
तत: + एव = ततएव
(10) विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ, ग, घ, ड॰, ´, झ, ज, ड, ढ़, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, ह में से किसी भी वर्ण के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ओ’ बन जायेगा।

मन: + अभिलाषा = मनोभिलाषा
सर: + ज = सरोज
वय: + वृद्ध = वयोवृद्ध
यश: + धरा = यशोधरा
मन: + योग = मनोयोग
अध: + भाग = अधोभाग
तप: + बल = तपोबल
मन: + रंजन = मनोरंजन
विच्छेद

मनोनुकूल = मन: + अनुकूल
मनोहर = मन: + हर
तपोभूमि = तप: + भूमि
पुरोहित = पुर: + हित
यशोदा = यश: + दा
अधोवस्त्र = अध: + वस्त्र
अपवाद

पुन: + अवलोकन = पुनरवलोकन
पुन: + ईक्षण = पुनरीक्षण
पुन: + उद्धार = पुनरुद्धार
पुन: + निर्माण = पुनर्निर्माण
अन्त: + द्वन्द्व = अन्तद्र्वन्द्व
अन्त: + देशीय = अन्तर्देशीय
अन्त: + यामी = अन्तर्यामी

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https://www.myallinone.in/sandhi-viched11-Feb-2020 1:34:41 pm
संज्ञा की परिभाषा भेद, उदाहरणhttps://www.myallinone.in/sanghya
संज्ञा के उदाहरण
रमेश परीक्षा में प्रथम आया था। इसलिए वह दौड़ता हुआ स्कूल से घर पहुंचा, इस बात से वह बहुत खुश था। उसने यह बात अपने माता- पिता को बताई। यह समाचार सुन वह इतने आनंदित हुए कि उन्होंने उसे गले लगा लिया।
 
यहाँ पर खुश और आनंदित (भाव ), रमेश , माता-पिता (यक्ति ), स्कूल,घर (स्थान ), सुन, गले (क्रिया ) आदि संज्ञा आई हैं।
संज्ञा के भेद (Sangya Ke Bhed) :-

1. जातिवाचक संज्ञा

2. भाववाचक संज्ञा

3. व्यक्तिवाचक संज्ञा

4.समूहवाचक संज्ञा

5. द्रव्यवाचक संज्ञा

1. जातिवाचक संज्ञा क्या होती है :- जिस शब्द से एक ही जाति के अनेक प्राणियों , वस्तुओं का बोध हो उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं अथार्त जिस शब्द से किसी जाति का सम्पूर्ण बोध होता हो यह उसकी पूरी श्रेणी और पूर्ण वर्ग का ज्ञान होता है उस संज्ञा शब्द को जातिवाचक संज्ञा कहते हैं।
 
उदहारण :- मोटर साइकिल, कार, टीवी, पहाड़, तालाब, गॉंव,लड़का, लडकी,घोडा, शेर।
 
2. भाववाचक संज्ञा क्या होती है :- जिस संज्ञा शब्द से किसी के गुण, दोष, दशा, स्वाभाव , भाव आदि का बोध हो वहाँ पर भाववाचक संज्ञा कहते हैं। अथार्त जिस शब्द से किसी वस्तु , पदार्थ या प्राणी की दशा , दोष, भाव , आदि का पता चलता हो वहाँ पर भाववाचक संज्ञा होती है।
 
उदहारण:- गर्मी, सर्दी, मिठास, खटास, हरियाली, सुख।
 
भाववाचक संज्ञा बनाना :-
भाववाचक संज्ञा चार प्रकार से बनाई जा सकती हैं —
 
1. जातिवाचक संज्ञा से
2. सर्वनाम से
3. विशेषण से
4. क्रिया से
 
1. जातिवाचक संज्ञा से भाववाचक संज्ञा बनाना :-
मित्र = मित्रता
पुरुष = पुरुषत्व
पशु = पशुता
पंडित = पांडित्य
दनुज = दनुजता
सेवक = सेवा
नारी = नारीत्व
भाई = भाईचारा
 
2. सर्वनाम से भाववाचक संज्ञा बनाना :-
पराया = परायापन
सर्व = सर्वस्व
निज = निजत्व
यह भी पढ़ें : Sandhi In Hindi , Samas In Hindi
 
3. विशेषण से संज्ञा बनाना :-
मीठा = मिठास
मधुर = मधुरता
चौड़ा = चौडाई
गंभीर = गंभीरता
मूर्ख = मूर्खता
पागल = पागलपन
भला = भलाई
लाल = लाली
 
4. क्रिया से भाववाचक संज्ञा बनाना :-
उड़ना = उड़न
लिखना = लेख
खोदना = खुदाई
बढ़ना=बाढ़
कमाना = कमाई
घेरना = घेरा
खपना = खपत
बचना =बचाव
नाचना = नाच
पड़ना = पड़ाव
लूटना = लूट
 
3. व्यक्तिवाचक संज्ञा क्या होती है :- जिस शब्द से किसी एक विशेष व्यक्ति , वस्तु, या स्थान आदि का बोध हो उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं। अथार्त जिस संज्ञा शब्द से किसी विशेष स्थान, वस्तु,या व्यक्ति के नाम का पता चले वहाँ पर व्यक्तिवाचक संज्ञा होती है।
उदहारण :- भारत, गोवा, दिल्ली, भारत, महात्मा गाँधी , कल्पना चावला , महेंद्र सिंह धोनी , रामायण ,गीता, रामचरितमानस आदि।
 
4. समूहवाचक संज्ञा क्या होती है :- इसे समुदायवाचक संज्ञा भी कहा जाता है। जो संज्ञा शब्द किसी समूह या समुदाय का बोध कराते है उसे समूहवाचक संज्ञा कहते हैं। अथार्त जो शब्द किसी विशिष्ट या एक ही वस्तुओं के समूह या एक ही वर्ग व् जाति के समूह को दर्शाता है वहाँ पर समूहवाचक संज्ञा होती है।
उदहारण :- गेंहू का ढेर, लकड़ी का गट्ठर , विद्यार्थियों का समूह , भीड़ , सेना, खेल आदि।
 
5. द्रव्यवाचक संज्ञा क्या होती है :- जो संज्ञा शब्द किसी द्रव्य पदार्थ या धातु का बोध कराते है उसे द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं। अथार्त जो शब्द किसी पदार्थ, धातु और द्रव्य को दर्शाते हैं वहाँ पर द्रव्यवाचक संज्ञा होती है।
 
उदहारण :- गेंहू , तेल, पानी, सोना, चाँदी, दही , स्टील , घी, लकड़ी आदि।
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https://www.myallinone.in/sanghya25-Mar-2021 11:14:26 am