National News

कदंब भारतीय उपमहाद्वीप में उगने वाला शोभाकर वृक्ष है।

  • 07-Oct-2020
  • 363
कदंब भारतीय उपमहाद्वीप में उगने वाला शोभाकर वृक्ष है। सुगंधित फूलों से युक्त बारहों महीने हरे, तेज़ी से बढऩे वाले इस विशाल वृक्ष की छाया शीतल होती है। इसका वानस्पतिक नाम एन्थोसिफेलस कदम्ब या एन्थोसिफेलस इंडिकस है, जो रूबिएसी परिवार का सदस्य है।   हिंदू धर्म में कदंब के वृक्ष का बहुत ही बड़ा महत्व है । यह पेड़ पूजनीय इसलिए है क्योंकि इसका वैज्ञानिक कारण भी है। भगवान श्रीकृष्ण कदंब  के पेड़ के नीचे बैठकर ही बांसुरी बजाकर अपनी गोपियों को मंत्रमुग्ध किया करते थे। कदंब के पेड़ का आध्यात्मिक व आयुर्वेदिक दोनों ही महत्व है। कदंब आयुर्वेद में अपने औषधीय गुणों के लिए बहुत ही मशहूर है। कदंब का स्वास्थ्यवद्र्धक गुण बहुत सारे रोगों के उपचार के लिए उपयोग किया जाता है 
National News कदंब भारतीय उपमहाद्वीप में उगने वाला शोभाकर वृक्ष है।


 कदंब  का फल खांसी, जलन, रक्तपित्त (नाक-कान से खून निकलना), अतिसार (दस्त), प्रमेह (डायबिटीज), मेदोरोग (मोटापा) तथा कृमिरोग नाशक होते हैं। कदंब  के पत्ते कड़वे, छोटे, भूख बढ़ाने में सहायक तथा अतिसार या दस्त में फायदेमंद होते हैं। विषैले जंतुओं के काटने पर इसका छाल का प्रयोग कर उसके विष को दूर किया जा सकता है।अक्सर शरीर में पोषण की कमी या असंतुलित खान-पान के कारण मुँह में छाले पड़ जाते हैं। कदंब  के पत्तों का काढ़ा बनाकर गरारा करने से मुंह के छालों से राहत मिलती है। वर्षा ऋतु में हीं कदम्ब के पेड़ पर फल लगते हैं। कदंब को कदम्बिका, नीप, प्रियक आदि नामों से भी जाना जाता है। कदंब  की जड़, पत्ते व फल सभी चमत्कारिक गुणों से भरे पड़े हैं। इसका फल व पत्ते चर्म रोग , घाव , सूजन मधुमेह आदि रोगों को ठीक करने में उपयोग किये जाते हैं। कदम्ब फंगल इंफेक्शन , बुखार आदि को दूर कर सकता है। अगर इसके छाल को उबाल कर पिया जाय तो ये कई रोगों को ठीक कर सकता है। 
  कदंब की कई जातियां पाई जाती हैं, जिसमें श्वेत-पीत लाल और द्रोण जाति के कदंब उल्लेखनीय हैं। साधारणतया यहां श्वेत-पीप रंग के फूलदार कदंब ही पाए जाते हैं। किन्तु कुमुदबन की कदंबखंडी में लाल रंग के फूल वाले कदंब भी पाए जाते हैं। श्याम ढ़ाक आदि कुछ स्थानों में ऐसी जाति के कदंब हैं, जिनमें प्राकृतिक रुप से दोनों की तरह मुड़े हुए पत्ते निकलते हैं। इन्हें  द्रोण कदंब  कहा जाता है। गोबर्धन क्षेत्र में जो नवी वृक्षों का रोपण किया गया है, उनमें एक नए प्रकार का कदंब भी बहुत बड़ी संख्या में है। ब्रज के साधारण कदंब से इसके पत्ते भिन्न प्रकार के हैं तथा इसके फूल बड़े होते हैं, किन्तु इनमें सुगंध नहीं होती है। महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में जो कदंब होता है, उसका फल कांटेदार होता है। मध्य काल में ब्रज के लीला स्थलों के अनेक उपबनों में अनेक उपबनों इस वहुत बड़ी संख्या में लगाया गया था। वे उपबन  कदंबखंडी कहलाते हैं।
 कदंब के पेड़ से बहुत ही उम्दा किस्म का चमकदार कागज़़ बनता है। इसकी लकड़ी को राल या रेजिऩ से मज़बूत बनाया जाता है। कदंब की जड़ों से एक पीला रंग भी प्राप्त किया जाता है।