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मार्कंडेय पुराण में पितृ की महिमा

  • 02-Sep-2020
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पितृ यानी पूर्वजों की महिमा देवताओं से कम नहीं है। माना जाता है कि उनके आशीर्वाद से घर में सुख-शांति बनी रहती है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मार्कंडेय पुराण में वर्णित एक कहानी के मुताबिक रुचि नाम के एक प्रजापति थे जिन्होंने खुद को सांसारिक मोहमाया से दूर कर लिया था।  रुचि का यह रवैया देखकर उनके पूर्वज बहुत चिंतित हो गए। उस वक्त एक ऐसे राजा की जरूरत थी जो दुनिया को चला सके, लेकिन रुचि तो इन सबसे उदासीन हो चुके थे।
 आखिर पुरखों ने रुचि को दर्शन दिए और उन्हें गृहस्थ जीवन का महत्व समझाया।  पहली बात तो यह कि रुचि लगभग बूढ़े हो चले थे। दूसरे उनके पास धन या सुख साधन नहीं थे। ऐसे में कौन उनसे अपनी बेटी की शादी कराता?आखिरकार सभी चिंताएं छोड़कर रुचि ब्रह्मा जी की आराधना में लग गए क्योंकि ब्रह्मा जी ही इस सृष्टि के रचयिता हैं।
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रुचि से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें दर्शन दिए। उन्होंने रुचि से कहा कि वह अपने पुरखों के लिए तर्पण करें और फिर से उनकी आराधना करें। ब्रह्मा जी की बात मानकर रुचि ने एकांत में जाकर अपने पुरखों के लिए तर्पण किया और पूरी श्रद्धा के साथ उनकी स्तुति की। रुचि ने उस समय जो स्तुति में जो कुछ भी कहा उसे  पितृ स्रोत का नाम दिया गया। रुचि की प्रार्थना से प्रसन्न होकर पूर्वज एक बार फिर उनके सामने प्रकट हुए। उन्होंने रुचि से वरदान मांगने को कहा और रुचि ने सुयोग्य पत्नी मांगी। पुरखों ने कहा कि तुम्हें जल्दी ही एक पत्नी मिलेगी और तुम पिता भी बनोगे। पुरखों के अंतर्धान होने के कुछ ही देर बाद नदी से प्रमोल्चा नाम की अप्सरा अपनी बेटी को लेकर रुचि के सामने प्रकट हुई। उसने रुचि से कहा कि वह उसकी बेटी से विवाह करें। इस तरह रुचि ने शादी करके गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया। कुछ समय के बाद दंपती को एक बेटा हुआ जिसका नाम मनु रखा गया। रुचि का पुत्र होने की वजह से उसे  रौच्य मनु  भी कहा गया। आगे चलकर यह बालक पूरी पृथ्वी का स्वामी बना। यह तो पूर्वजों के महिमा की सिर्फ एक कहानी है। हमारे धर्म ग्रंथों में ऐसी न जाने कितनी कहानियां भरी पड़ी हैं। यही वजह है कि आज भी लोग पूरी श्रद्धा के साथ पितरों को याद करते हैं।