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प्राचीन चर्मण्वती नदी, जिसमें माता कुंती ने कर्ण को प्रवाहित किया था
महाभारत, वनपर्व में अश्वनदी का चर्मण्वती में, चर्मण्वती का यमुना में और यमुना का गंगा में मिलने का उल्लेख मिलता है। चर्मावती का अर्थ है चमड़ा, यह कहा जाता है कि इस नदी के तट पर प्राचीन काल में चमड़ा सुखाया जाता था। पुराणों के अनुसार प्राचीन काल में राजा रतिदेव द्वारा स्वर्ग की कामना के लिए इस नदी के तट पर पशुओं की बलि दी जाती थी, जिसके परिणामस्वरूप इस नदी का रंग लाल हो गया था। पशुओं की त्वचा को इस नदी के तट पर सुखाने के कारण यह नदी चमड़े वाली नदी के नाम से भी प्रसिद्ध हुई एवं इसका नाम चरमावती पड़ा। महाभारत के अनुसार राजा रन्तिदेव के यज्ञों में जो आर्द्र चर्मराशि इक_ी हो गई थी, उससे यह नदी का जन्म हुआ है।
कुछ इतिहासकारों के अनुसार सरस्वती नदी क्षेत्र से विस्थापित लोग इस नदी के तट पर बस गए थे। तेलगू जैसी कुछ द्रविण भाषाओं के साथ साथ संस्कृत भाषा में चम्बल शब्द का शाब्दिक अर्थ मतस्य है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार इस नदी के तट पर कुछ मत्स्य शासकों ने अपने शासन का उद्गम इस नदी तट पर किया। चर्मनवती या चरमावती नदी की दक्षिणी सीमा महाभारत काल के पांचाल राज्य से मिलती थी। महाभारत के अनुसार राजा द्रुपद ने दक्षिणी पांचाल राज्य पर चर्मनवती या चरमावती नदी के तट तक शासन किया। इस नदी के बारे में यह कथा प्रचलित है कि कुंती ने अपने नवजात पुत्र कर्ण को एक टोकरी में रखकर इस नदी में प्रवाहित कर दिया था। नवजात पुत्र सहित वह टोकरी प्रवाहित होते-होते गंगा तट पर स्थित अंग राज्य की राजधानी चम्पापुरी पहुंची जहां कर्ण का बचपन व्यतीत हुआ।
महाकवि कालिदास ने भी अपनी रचना मेघदूत में चर्मण्वती को रन्तिदेव की कीर्ति का मूर्तस्वरूप कहा है। इससे यह जान पड़ता है कि रन्तिदेव ने चर्मण्वती के तट पर अनेक यज्ञ किए थे। चर्मण्वती नदी को वनपर्व के तीर्थ यात्रा अनुपर्व में पुण्य नदी माना गया है।
इस नदी का उद्गम जनपव की पहाडिय़ों से हुआ है। यहीं से गंभीरा नदी भी निकलती है। यह यमुना की सहायक नदी है।